Sunday, 3 November 2019

"आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीः कुछ सूत्रात्मक वाक्य"

"आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीः कुछ सूत्रात्मक वाक्य"


1. आध्यात्मिक ऊँचाई तक समाज के बहुत थोड़े लोग ही पहुँच सकते हैं। बाकी लोग छोटे-मोटे दुनियावी टंटों में उलझे रह जाते हैं। वे आध्यात्मिक आदर्श को विकृत कर देते हैं।
2. आम्रमंजरी मदन देवता का अमोघ बाण है।
3. आसमान में निरन्तर मुक्का मारने में कम परिश्रम नहीं है।
4. कमजोरों में भावुकता ज्यादा होती होगी।
5. कभी कभी शिष्य परम्परा में ऐसे भी शिष्य निकल आते हैं, जो मूल सम्प्रदाय प्रवर्त्तक से भी अधिक प्रतिभाशाली होते हैं। फिर भी सम्प्रदाय स्थापना का अभिशाप यह है कि उसके भीतर रहने वाले का स्वाधीन चिन्तन कम हो जाता है।
6. कर्मफल का सिद्धान्त भारतवर्ष की अपनी विशेषता है। पुनर्जन्म का सिद्धान्त खोजने पर अन्यान्य देशों के मनीषियों में भी पाया जाता है।
7. कहते हैं, दुनिया बड़ी भुलक्कड़ है! केवल उतना ही याद रखती है, जितने से उसका स्वार्थ सधता है। बाकी को फेंक कर आगे बढ़ जाती है।
8. घृणा और द्वेष से जो बढ़ता है, वह शीघ्र ही पतन के गह्वर में गिर पड़ता है।
9. जब तक तुम पुरुष और स्त्री का भेद नहीं भूल जाते, तब तक तुम अधूरे हो, अपूर्ण हो, आसक्त हो।
10. जब तक हमारे सामने उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो जाता, तब तक कोई भी कार्य, कितनी ही व्यापक शुभेच्छा के साथ क्यों न आरम्भ किया जाय, वह फलदायक नहीं होगा।
11. जितना कुछ इस जीवन शक्ति को समर्थ बनाता है उतना उसका अंग बन जाता है, बाकी फेंक दिया जाता हैं।
12. जिन स्त्रियों को चंचल और कुलभ्रष्टा माना जाता है, उनमें एक दैवी शक्ति भी होती है।
13. जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परामुखापेक्षिता से न बचा सके, जो उसकी आत्मा को तेजोदीप्त न बना सके, जो उसके हृदय को परदुखकातर और संवेदनशील न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता हैं।
14. जो साहित्य मनुष्य समाज को रोग, शोक, दारिद्रय, अज्ञान तथा परामुखापेक्षिता से बचाकर उसमें आत्मबल का संचार करता है, वह निश्चय ही अक्षय निधि है।
15. ड़ेमोक्रेट हँसना और मुस्कराना जानता है पर डिक्टेटर हँसने की बात सोचते भी नहीं।
16. धर्म मनुष्य से त्याग की आशा रखता है।
17. नाना प्रकार की धार्मिक साधनाओं, कलात्मक प्रयत्नों और सेवा भक्ति तथा योग मूलक अनूभूतियों के भीतर से मनुष्य उस महान सत्य के व्यापक रूप को क्रमशः प्राप्त करता जा रहा है जिसे हम संस्कृति शब्द द्वारा व्यक्त करते हैं।
18. पंडिताई भी एक बोझ है जितनी ही भारी होती है, उतनी ही तेजी से डुबोती है। जब वह जीवन का अंग बन जाती है, तो सहज हो जाती है तब वह बोझ नहीं रहती।
19. प्रवृतियों को दबाना नहीं चाहिए, उनसे दबना भी नहीं चिए।
20. पावक को कभी कलंक स्पर्श नहीं करता, दीपशिखा को अंधकार की कालिमा नहीं लगती, चंद्रमंडल को आकाश की नीलिमा कलंकित नहीं करती और जाह्नवी की वारिधारा को धरती का कलुष स्पर्श भी नहीं करता।
21. पुरुष का सत्य और है, नारी का और।
22. पुरुष निःसंग है, स्त्री आसक्त, पुरुष निर्द्वव्द्व है, स्त्री द्वन्द्वोन्मुखी, पुरुष मुक्त है, स्त्री बद्ध।
23. पुरुष स्त्री को शक्ति समझकर ही पूर्ण हो सकता है, पर स्त्री स्त्री को शक्ति समझकर अधूरी रह जाती है।
24. प्रेम बड़ी वस्तु है, त्याग बड़ी वस्तु है और मनुष्य मात्र को वास्तविक मनुष्य बनाने वाला ज्ञान भी बड़ी वस्तु है।
25. ब्राह्मण न भिखारी होता है, न महा संधि विग्रहिक, वह धर्म का व्यवस्थापक होता है।
26. भारतीय जनता की विविध साधनाओं की सबसे सुन्दर परिणति को ही भारतीय संस्कृति कहा जा सकता हैं।
27. मनुष्य की जीवनी शक्ति बड़ी निर्मम है, वह सभ्यता और संस्कृति के वृथा मोहों को रौंदती चली आ रही है।
28. मनुष्य की श्रेष्ठ साधनाएँ ही संस्कृति हैं।
29. मनुष्य के भीतर नाखून बढ़ा लेने की जो सहजात वृत्ति है, वह उसके पशुत्व का प्रमाण है। उनके काटने की जो प्रवृत्ति है वह उसकी मनुष्यता की निशानी है।
30. मनुष्य में जो मनुष्यता है, जो उसे पशु से अलग कर देती है, वही आराध्य है। क्या साहित्य और क्या राजनीति, सबका एक मात्र लक्ष्य इसी मनुष्यता की सर्वांगीण उन्नति है।
31. मानव जीवन की तीन स्थितियाँ मानी गई हैं- विकृति, प्रवृति और संस्कृति। विकृति अधोगामिनी स्थिति है तो संस्कृति ऊर्ध्वगामिनी।
32. माया का जाल छुड़ाए छूटता नहीं, यह इतिहास की चिरोद्धोषित वार्ता सब देशों और सब कालों में समान भाव से सत्य रही है।
33. माया से छूटने के लिए माया के प्रपंच रचे गए, यह सत्य है।
34. मैं स्त्री शरीर को देव मंदिर के समान पवित्र मानता हूँ।
35. यदि आप संसार की सारी समस्याओं का विश्लेषण करें तो इनके मूल में एक ही बात पाएँगे-मनुष्य की तृष्णा।
36. यह नहीं समझना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति जो अनुभव करता है, वह सत्य ही है। शरीर और मन की शुद्धि आवश्यक है।
37. राजनीति भुजंग से भी अधिक कुटिल है, असिधारा से भी अधिक दुर्गम है, विद्युत शिखा से भी अधिक चंचल है।
38. राजनैतिक पराधीनता बड़ी बुरी वस्तु है। वह मनुष्य को जीवन यात्रा में अग्रसर होने वाली वस्तुओं से वंचित कर देती है।
39. विनोद का प्रभाव कुछ रासायनिक सा होता है। आप दुर्दान्त डाकू के दिल में विनोदप्रियता भर दीजिए, वह लोकतन्त्र का लीडर हो जाएगा, आप समाज सुधार के उत्साही कार्य कर्त्ता के हृदय में किसी प्रकार विनोद का इंजेक्शन दे दीजिए, वह अखबारनवीस हो जाएगा।
40. शंकाशील हृदयों में प्रेम की वाणी भी शंका उत्पन्न करती है।
41. शुद्ध है केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा। वह गंगा सी अबाधित-अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है।
42. संस्कृति मनुष्य की विविध साधनाओं की चरम परिणति है। धर्म के समान वह भी अविरोधी वस्तु है। वह समस्त दृश्यमान विरोधों में सामंजस्य उत्पन्न करती है।
43. सत्य सार्वदेशिक होता है।
44. सभ्यता की दृष्टि वर्तमान की सुविधा-असुविधा पर रहती है, संस्कृति की भविष्य या अतीत के आदर्श पर।
45. सभ्यता बाह्य होने के कारण चंचल है, संस्कृति आंतरिक होने के कारण स्थायी।
46. सभ्यता समाज की बाह्य व्यवस्थाओं का नाम है, संस्कृति व्यक्ति के अंतर के विकास का।
47. सारा संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है।
48. साहित्य यदि जनता के भीतर आत्मविश्वास और अधिकार चेतना की संजीवनी शक्ति नहीं संचारित करता तो परिणाम बड़े भयंकर होंगे।
49. सीधी रेखा खींचना सबसे टेढ़ा काम है।
50. सुविधाओं को पा लेना ही बड़ी बात नहीं है, प्राप्त सुविधाओं को मनुष्य मात्र के मंगल के लिए नियोजित कर सकना भी बहुत बड़ी बात है।
51.स्त्री प्रकृति है। उसकी सफलता पुरुष को बाँधने में है, किन्तु सार्थकता पुरुष की मुक्ति में है।
52. स्नेह बड़ी दारुण वस्तु है, ममता बड़ी प्रचंड शक्ति है।
53. स्यारों के स्पर्श से सिंह किशोरी कलुषित नहीं होती। असुरों के गृह में जाने से लक्ष्मी घर्षित नहीं होती। चींटियों के स्पर्श से कामधेनु अपमानित नहीं होती। चरित्रहीनों के बीच वास करने से सरस्वती कलंकित नहीं होती।
54. स्वर्गीय वस्तुएँ धरती से मिले बिना मनोहर नहीं होती।
55. हमारी राजनीति, हमारी अर्थनीति और हमारी नवनिर्माण की योजनाएँ तभी सर्वमंगल विधायिनी बन सकेंगी जब हमारा हृदय उदार और संवेदनशील होगा, बुद्धि सूक्ष्म और सारग्रहिणी होगी और संकल्प महान और शुभ होगा।

“मेरे प्रेरणा स्त्रोतः मामा जी श्री शिवकुमार बिलगरामी” प्रेरणा पत्रिका लखनऊ से प्रकाशित


“मेरे प्रेरणा स्त्रोतः मामा जी श्री शिवकुमार बिलगरामी”


प्रेरणा अर्थ एवं परिभाषाः

अभिप्रेरणा कार्मिकों से संबंधित एक प्रबंधकीय कार्य है । इसका उद्देश्य कार्मिकों में कार्य करने की इच्छा शक्ति को जागृत करना और उनका आत्मविश्वास बढ़ाना है ताकि उद्देश्य प्राप्त सकें । लिकर्ट ने इसे प्रबन्ध हृदय कहा है । Motive लैटिन के Movere से बना है । Movere का अर्थ है, चलना । अंग्रेजी में अभिप्रेरण को मोटिवेशन (Motivation) कहते हैं जो Motive शब्द से बना है । Motive का अर्थ है इच्छा शक्ति को जागत करना, जबकि अभिप्रेरण का अर्थ है प्रोत्साहित करना, प्रेरित (कार्य के लिये) । जुसियस- वांछित प्रतिक्रिया प्राप्त करने हेतु सही बटन दबाना । कूण्टज-ओडोनेल के अनुसार- अभिप्रेरण से आशय है इच्छित कार्य करने हेतु कार्मिकों को प्रोत्साहित करना ।
मैं अपने मामा जी श्री शिवकुमार बिलगरामी को एक अभिभावक तथा शिक्षक एवं पथ प्रदर्शक के साथ ही अपना सबसे अच्छा मित्र भी मानता हूँ क्योंकि चाहे कुछ भी हो जाये लेकिन मेरे प्रति उसका प्रेम और स्नेह कभी कम नहीं होता है। जब भी मैं किसी संकट या फिर तकलीफ में होता हूँ वह मेरी सहायता करने का हरसंभव प्रयास करते हैं।
श्री शिवकुमार बिलगरामी हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत जैसे सभी लौकिक विषयों में पारंगत ज्ञान के धनी हैं। स्वभाव से ही मृदु, हितमित प्रियभाषी, जीवदया के मसीहा की प्रतिमा हैं। वर्तमान में आप लोकसभा में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर कार्यरत है। आधुनिक समय में आप एक जानेमाने ग़ज़लकार हैं और आपकी नई कहँकशा एवं वो दो पल नामक जो ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इसके लिए आपको विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित भी किया गया है। आप सतत रूप से लेखन कार्य के साथ साथ सामाजिक कार्यों में लगे रहते हैं। रिशतों एवं गाँव के प्रति आपका लगाव सदैव मुझे प्रेरित करता है, इस आलेख में उनके ग़ज़ल संग्रह वो दो पल से कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ :
कभी जब गाँव जाता हूँ तो बचपन ढूँढता हूँ मैं।
नये घर में पुराने घर का आँगन ढूँढता हूँ मैं।।
X    X    X
मेरे बचपन का कोई दोस्त आता है अगर मिलने।
तो उसके दिल में बचपन का सगापन ढूँढता हूँ मैं।।
अगर कोई कुछ हासिल करना चाहते हैं, तो दृढ़ता और ध्यान केंद्रित रहें. फिर जो भी चाहो उसे आप प्राप्त कर सकेंगे जैसा कि हम सोचते हैं। सही मायने में हमारा प्रेरणा-स्त्रोत कौन है ? कहते हैं कि हमारे प्रेरणा-स्त्रोत हमारे आसपास ही होते हैं । बस जरुरत है तो उसे पहचानने और समझने की । ज्यादातर ये देखने में आता है कि हम उस प्रेरणा की तलाश बाहर की तरफ करते हैं,  सही भी है हमें कब कौन और कहाँ प्रेरित कर देता इसे जानने में ही कभी कभी समय गुजर जाता है। एक बात मुझे सोचने पर विवश कर देती है कि जब हम किसी परेशानी, शारीरिक पीड़ा, मानसिक यातना, दुविधा, या बुरे दिनों से गुजर रहे होते हैं, उस समय वो कौन होता है जो एक-एक क्षण हमारे साथ है और हमारे विचारों के सूक्ष्म से सूक्ष्म उतार-चढ़ाव का साक्षी है ? वो मुश्किल समय बेहद संवेदनशील भी होता  है । तथ्य और चाह, आशा और निराशा के बीच फंसे हमारे विचारों और मनोदशा को उस समय संभालना जरुरी हो जाता है । हमें जरुरत होती है किसी ऐसे प्रेरणा-स्त्रोत की, जो एक अच्छे निर्देशक की तरह हमें उस परिस्तिथि से लड़ना, अपने आप को संभालना सिखाये । हमारे अंदर छुपी हमारी ही विशेषताओं को दिखाए ।
वक़्त लगेगा लेकिन तुम भी दुनियादारी सीख ही लोगे।
किसको दिल का राज़ बतायें ये हुशियारी सीख ही लोगे।।
हमें सही दिशा निर्देश देने में अगर कोई सक्षम है तो वो है मेरे मामा जी श्री शिवकुमार बिलगरामी आपने हमारे जीवन में आने वाली तमाम समस्याओं से जुझने और उनसे कैसे निपटा जाए आदि के लिए मेरा हर समय पर पथ प्रदर्शन किया है। हमारे  अवचेतन मन पर उनका गहरा प्रभाव है। उन्होंने मुझे प्रेरित करने के लिए समय-समय कुछ न कुछ सलाह जरूर दी है। मैं जब भी किसी परिस्थिति में होता हूँ वे मेरा उचित मार्ग दर्शन करते हैं। उनकी कुछ बाते जो याद आ रहीं हैं, उनका जिक्र कर रहा हूँ।
१.     आप किसी भी परिस्तिथि का सामना धैर्य और साहस के साथ करते रहिए सफलता जरूर मिलेगी।
२.     किसी भी चीज को हगर पाना है तो उसके लिए दिन रात मेहनत करो, आलस मत करो।
३.      विचार पक्षपाती नहीं होते, यानि अगर बुरा समय है तो आप उसे स्वीकार करो पर अपने हौसले और लगन को कम नहीं होने दो ।
४.     आप में संबल आता है । आप जो करना चाहते हो कर सकते हो लेकिन उसके लिए जो सही रास्ता है उस पर चलो।
५.     सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आप किसी भी परिस्तिथि में खुश रहो हैं और शांति का अनुभव करते हुए अपने कार्य को अंजाम दो ।
ऐसे में जब आपको दूसरों की सलाह भी मिलती है,  भले ही वो सकारात्मक (positive) ढंग से मिले या नकारात्मक (negative) तरीके से,  आप उसे रचनात्मक (constructive) तरीके से ही लेते हैं और अगर दूसरों की बातों में निराशावादी तत्व ज्यादा हो, तो उसे बाहर ही रोक देना भी आप सीख जाते हैं । मेरे लिए जीवन में किसी भी बाधा या मुश्किल से निपटने के लिए मेरे मामा जी से अधिक कोई 'प्रेरणा स्रोत' नहीं है। जिस तरह से उन्होंने अपने जीवन में विभिन्न समस्यों का सामना किया है उसी तरह से समस्यों से किस तरह से निपटा जाए इसके लिए वे सदैव प्रेरित करते रहते हैं :
मुश्किलों के दौर को हम ख़ुद पे ऐसे सह गये।
कुछ तो आँसू पी लिए कुछ एक आँसू बह गये।।
X x    x
क्या बताऊँ मैं तुम्हें अब ज़ख़्म कैसे हैं मेरे।
भर गये हैं ज़ख़्म लेकिन दाग़ फिर भी रह गये।।
जब भी किसी समय मेरी हिम्मत टूटने लगती है या मैं किसी प्रकार के अवसाद आदि से धिर जाता हूँ तो मैं मामा जी से उस समस्या से निपटने या उससे उबरने का रास्ता पूँछता हूँ उस समय वह मेरा उचित मार्ग दर्शन करते हैं और मुझे मेरी मुसीबत से लड़ने के लिए मेरे अन्दर एक नया जोश उत्पन्न करते हैं । कुछ लोगों के लिए अपने वरिष्ठ या घनिष्ठ का दिया हुआ कोई उपहार या विचार यह काम कर देता है लेकिन मेरे लिए यह कार्य मामा जी बहुत ही सरल और सहज रूप में कर देते हैं । अगर आप भी अपने जीवन पर ध्यान दें तो ऐसी कोई न कोई प्रेरक 'ढाल' या 'हथियार' जरूर पा जाएँगे जिसकी मदद से किसी भी बाधा से लड़ना बहुत आसान हो जाएगा । वर्तमान में देखा जाए तो सब मतलब के साथी हैं वक्त पड़ने पर कोई किसी का साथ नहीं देता है लेकिन मेरे मामा जी सदैव मेरा साथ देते हैं । उनका आज के लोगों के प्रति विचार है  कि वे किस तरह के हमारे हमदर्द हैं :
हमदर्द कैसे-कैसे हमको सता रहे हैं।
काँटों की नोक से जो मरहम लगा रहे हैं।।
उनका कहना है कि प्रत्येक दायित्व सीखने का एक अवसर होता है तथा बीज से वृक्ष बनने की प्रक्रिया ही विकास कहलाती है। स्वप्रेरणा से किया गया कार्य ईश्वरीय सेवा बन जाता है अन्यथा कोई भी कार्य बोझ हो जाता है। अतः दायित्ववान कार्यकर्ता अपने दायित्व को मन से स्वीकार कर अंगीकार करें क्योंकि इस प्रकार का कर्मयोग ही हमारी सक्रियता, रचनात्मकता तथा प्रगति का आधार बनता है। मुझे नहीं लगता की मेरे लिए मामा जी से बढ़कर किसी और से मैं प्रेरणा का वो स्तर हासिल कर सकता हूँ जो मुझे उनसे सतत मिलती है ।माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है। यहीं कारण है प्रायः संसार में ज्यादातर जीवनदायनी और सम्माननीय चीजों तो माँ के संज्ञा दी गयी है जैसे कि भारत माँ, धरती माँ, पृथ्वी माँ, प्रकृति माँ, गौ माँ आदि। इसके साथ ही माँ को प्रेम और त्याग की प्रतिमूर्ति भी माना गया है।  पिता को आसमान का दर्जा इसीलिए दिया जाता है की वह हमेशा शांत रहकर कर्म करने का संदेश चुपचाप दे जाते हैं ।लेकिन मामा जी में मेरा जो अटूट विश्वाश है वो हमेशा मुझे कुछ न कुछ सकारात्मक सोच प्रदान करता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है ।
हमारे गुरुजन हमारी जिन्दगी का रुख बदल देते हैं उनकी कुछ पलों की सीख हमें जिंदगी भर के लिए रास्ता दिखला देती हैं ।मेरे लिए इस मामले में गर्व करने की बात है कि मेरे गुरुजनों के साथ-साथ मामा जी ने अपना अशिर्वाद सदैव बनाये रखा है। जिस समय मैं गाँव से बाहर पढ़ने के लिए गया था उस मसय मेरी माली हालत ठीक नहीं थी लेकिन मामा जी ने बताया कि क्या पढ़ना है और कैसे पढ़ना है। समय की परिस्थिति से जुझने में उन्होंने मेरी बहुत ही सहायता की ही। मैं सदैव यही चाहता हूँ कि :
मेरे मौला तेरी रहमत का तलबगार हूँ मैं
मेरी जानिब भी ज़रा देख तू बीमार हूँ मैं।।
X            x          x
मुझे जीगर न समझ तू मैं कोई ग़ैर नहीं।
तेरा साया हूँ मालिक तेरा विस्तार हूँ मैं।।
मेरे मामा जी सदैव मेरा बहुत ही ख्याल रखते हैं। उनके महत्व का वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकता हूँ। मैं चाहे किसी भी स्थिति में रहूँ लेकिन वह सदैव ही मेरे सुख-दुःख  में मेरे साथ रहते हैं।  जिस तरह मेरी माँ ने मेरे पालन-पोषण में कोई कसर नही छोड़ी,  उसी तरह से मेरे मामा जी ने मेरी शिक्षा-दिक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी, वह आज भी मुझे अनवरत रूप से कुछ न कुछ करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। मामा जी हमें कभी इस बात का एहसास नहीं होने देते की संकट की घड़ी में मैं अकेला हूँ। इसी कारणवश हमारे जीवन में मामा जी के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है। यही कारण है कि मैं उनका बहुत ही सम्मान करता हूँ और उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुँचाना चाहता हूँ।
सुना है अच्छे कर्मों का हमें फल अच्छा मिलता है।
कोई पहले का अच्छा कर्म फल जाता तो अच्छा था।।
निष्कर्ष
मेरी मामा जी मेरे जीवन का आधारस्तंभ है, वह मेरी शिक्षक तथा मार्गदर्शक होने के साथ ही मेरे सबसे अच्छे मित्र भी है । वह मेरी हर समस्याओं, दुखों और विपत्तियों में मेरे साथ खड़े रहते हैं और मुझे जीवन के इन बाधाओँ को पार करने शक्ति प्रदान करते हैं, उसके द्वारा बतायी गयी छोटी-छोटी बातों ने मेरे जीवन में बड़ा परिवर्तन किया है । यही कारण है कि मैं अपने मामा जी को अपना आदर्श और सबसे अच्छा मित्र भी मानता हूँ । हमारे जीवन में यदि कोई सबसे ज्यादा महत्व रखता है तो वह हमारे मामा जी ही हैं क्योंकि बिना मामा जी के मार्ग दर्शन एवं उनकी प्रेरणा के तो मैं अपने जीवन कल्पना भी नहीं कर सकता हूँ क्योंकि आज मैं जिस जगह पर हूँ वहाँ तक मुझे पहुँचाने में उनका विशेष योगदान एवं उनकी मेहनत का फल है । यही कारण है कि मामा जी पर मेरा ईश्वर तुल्य विश्वास है । मैं यही चांहूगा उनका यह अशिर्वाद एवं उनका मार्ग दर्शन हम पर सदैव बना रहे ।

*****इति*****

"आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीः कुछ सूत्रात्मक वाक्य"

" आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीः कुछ सूत्रात्मक वाक्य " 1. आध्यात्मिक ऊँचाई तक समाज के बहुत थोड़े लोग ही पहुँच सकते हैं।...