Wednesday, 17 July 2019

“राजभाषा हिंदी के कार्यों में सूचना प्रौद्योगिकी का योगदान”



राजभाषा हिंदी के कार्यों में सूचना प्रौद्योगिकी का योगदान




सूचना प्रौद्योगिकी और हिंदी
इस आज इंटरनेट पर हर कोई ब्लाग, फ़ेसबुक, वाट्सअप, गूगल, इन्स्टाग्राम, ट्विटर, ईमेल, लिंक्डइन, मैसेंजर आदि माध्यमों से परस्पर संपर्क में रह सकता है। फ़ेसबुक पर मेरी गहरी दोस्ती ऐसे लोगों से संभव हो पाई जिनके नाम भी मैं ने नहीं सुने थे। यूट्यूब पर मैं भूली बिसरी फ़िल्में और हर विषय के वीडियो देख सकता हूँ। गूगल के नक़्शे अब हिंदी में मिलने लगे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इंटरनैट पर हिंदी सामग्री हर साल 95 प्रतिशत बढ़ रही है।इस प्रौद्योगिकी की ही कृपा है कि ईमेल, फ़ेसबुक, वाट्सऐप, लिंक्ड-इन, मेसेंजर, ट्विटर के ज़रिए करोड़ों लोग सामूहिक जन संपर्क कर रहे हैं। दिन में कम से कम एक बार मैं विकिपीडिया के इंग्लिश संस्करण की शरण जाता हूँ। एक अनुमान के अनुसार इनमें से लगभग एक लाख हिंदी लेख भी हैँ, पर उनकी गुणवत्ता असंतोषजनक है।

राजभाषा हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी

आज का युग सूचना, संचार व विचार का युग है । सूचना प्रौद्योगिकी एक सरल तंत्र है जो तकनीकी प्रयोग के सहारे सूचनाओं का संकलन, प्रक्रिया व संप्रेषन करता है । सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग मे कंप्यूटर का महत्व कल्पवृक्ष से कम नहीं है जिससे व्यवसायिक, वाणिज्यिक, जन संचार, शिक्षा, चिकित्सा, आदि कई क्षेत्र लाभांवित हुये हैं। कंप्यूटर व सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जो विकास हुआ है वह भाषा के क्षेत्र में भी मौन क्राँति का वाहक बन कर आया है । अभी तक भाषा जो केवल मनुष्यों के आवशकताओं को पूरा कर रही थी, उसे सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में मशीन व कंप्यूटर की नित नई भाषायी मांगों को पूरा करना पड़ रहा है ।
चूँकि वर्तमान समय सूचना प्रौद्योगिकी का युग है, सभी कार्यालयों में तमाम काम कंप्यूटरों पर ही किये जाते हैं। रोजमर्रा की जिन्दगी मानो सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित है । मोबाइल फोन, एटीएम, इंटरनेट बैंकिंग से लेकर रेलवे आरक्षण, ऑनलाइन शॉपिंग, आदि तक सूचना प्रौद्योगिकी हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है । संविधान के अनुच्छेद 343 के आधार पर हिंदी को भारत में राजभाषा का दर्जा प्राप्त है जिसकी वज़ह से हिंदी भाषा का प्रयुक्ति क्षेत्र बहुत विस्तृत है, सभी सरकारी कार्यालयों में हिंदी को कार्यालयीन भाषा का दर्जा प्राप्त है व इसका कार्यक्षेत्र केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों, कार्यालयों, निगमों, विभागों व उपक्रमों आदि तक फैला हुआ है ।समकालीन समय में सूचना प्रौद्योगिकी जिसकी आत्मा कंप्यूटर है, किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बना हुआ है। यह सर्वज्ञात है कि कंप्यूटर में राजभाषा हिंदी में कार्य करना सुगम बनाया है । हिंदी में कंप्यूटर स्थानीयकरण का कार्य काफी पहले प्रारंभ हुआ और अब यह आंदोलन की शक्ल लेचुका है । हिंदी सॉफ्टवेयर लोकलाइजेशन का कार्य सर्वप्रथम सी- डैक द्वारा 90 के दशक में किया गया था । वर्तमान में हिंदी भाषा के लिये कई संगठन कार्य करते है, जिसमें सी –डैक, गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग केंद्रीय हिंदी संस्थान और अनेकों गैर सरकारी संगठन जैसे सराय, इंडलिक्स, आदि प्रमुख हैं।
एक ओर यूनिकोड के प्रयोग ने हिंदी के प्रयोग को आगे बढ़ाने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है वहीं आज सिस्टम जेनरेटेड प्रोग्रामों में हिंदी की स्थिति कुछ खास नही है।अधिकतर सॉफ्टवेयर प्रोग्राम पहले ही तैयार कर लिये जाते हैं, उसके बाद उनमॆं हिंदी की सुविधा तलाश की जाती है। इसके बावजूद भी यह संतोष का विषय है कि 21 वीं सदी में भाषा के प्रचार –प्रसार में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिक अहम हो गयी है व भाषाओं के मानकीकरण का कार्य आसान हो गया है ।
हिंदी यूनिकोड के अस्तित्व में आने के बाद अब हर कंप्यूटर, लैपटॉप यहाँ तक की स्मार्ट फोन पर भी हिंदी में काम करना व करवाना कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है ।यूनिकोड एक अंतर्राष्ट्रीय मानक कोड है जिसमें हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं सहित विश्व की लगभग 200 भाषाओं के लिये कोड निर्धारित किये गये हैं । चूँकि कंप्यूटर मूल रूप से किसी भाषा से नहीं बल्कि अंकों से संबंध रखता हैइसलिये हम किसी भी भाषा को एनकोडिंग व्यवस्था के तहत मानक रूप प्रदान कर सकते हैं ।साथ ही इसी आधार पर उनके लिये फॉण्ट भी निर्मित किये जा सकते हैं, जैसे अंग्रेज़ी भाषा अथवा रोमन लिपि के लिये एरियल फॉण्ट की एनकोडिंग की गयी है, उसी तरह हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के लिये निर्मित आधुनिक यूनिकोड फॉण्ट्स की भी एंकोडिंग की गयी है जिसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर एप्पल, आइबीएम, माइक्रोसॉफ्ट, सैप, साइबेस, यूनिसिस जैसी सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की प्रमुख कंपनियों ने अपनाया है ।मानकीकरण का यह कार्य अमेरिका स्थित यूनिकोड कंसोर्शियम द्वारा किया जाता है जो कि लाभ ना कमाने वाली एक संस्था है ।भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक विभाग ने भी इस कंसोर्शियम के जरिये हिंदी के यूनिकोड फॉण्ट जैसे मंगल, कोकिला, एरियल यूनिकोड एमएस, आदि की एनकोडिंग करायी है जिसकी वज़ह से आधुनिक कंप्यूटरों में यह फॉण्ट पहले से ही विद्यमान होते हैं।यूनिकोड 16 बिट की एक एनकोडिंग व्यवस्था है जो कि पालि और प्राकृत जैसी प्राचीन भाषाओं से भी परिचित है। इसकी विशेषता यह है कि एक कम्‍प्‍यूटर पर के पाठ को दुनिया के किसी भी अन्‍य यूनिकोड आधारित कम्‍प्‍यूटर पर खोला व पढ़ा जा सकता है। इसके लिए अलग से उस भाषा के फोंट का प्रयोग करने की अनिवार्यता नहीं होती; क्‍योंकि यूनिकोड केन्‍द्रित हर फोंट में सिद्धांतत: विश्‍व की हर भाषा के अक्षर मौजूद होते हैं। यूनिकोड आधारित कम्‍प्‍यूटरों में प्रत्‍येक कार्य भारत की किसी भी भाषा में किया जा सकता है, बशर्ते कि ‘ऑपरेटिंग सिस्‍टम’ पर इन्‍स्‍टॉल सॉफ्टवेयर यूनिकोड व्यवस्था आधारित हो। आज बाज़ार में आने वाला हर नया कंप्यूटर व अन्य गैजट ना सिर्फ हिंदी, बल्कि दुनिया की आधिकत्तर भाषाओं में कार्य करने में सक्षम है क्योंकिं यह सभी लिपियाँ यूनिकोड मानक मॆं शामिल हैं।
मौजूदा समय में हिंदी ‘ग्लोबल हिंदी” में परिवर्तित हो गयी है, आज तकनीकी विकास के युग में दूसरे देशों के लोग भी, भले की विपणन के लिए ही सही, हिंदी भाषा सीख रहे हैं । आज स्थिति यह है कि भारत व चीन के व्यवसायिक संबंधों को बढ़ाने की संभावनाओं के तलाश के लिये लगभग दस हज़ार लोगपेइचिंग में हिंदी सीख रहे हैं। आज से लगभग 45 वर्ष पूर्व कंप्यूटर पर हिंदी में कार्य आरंभ हुआ और इसी तरह एंकोडिंग व डिकोडिंग के माध्यम से विश्व की विभिन्न भाषाएँ भी कंप्यूटर पर सुलभ होने लगी, इस तकनीकी विकास ने भारतीय भाषाओं को जोड़ा है, कंप्यूटर के माध्यम से विभिन्न सॉफ्टवेयरों,सी-डैक संस्था के हिंदी सीखने सीखाने के विभिन्न कंप्यूटरीकृत  कार्यक्रमों जैसे- प्रबोध, प्रवीण व प्राज्ञ पाठ्यक्रमों के लिये लीला वाचिक तकनीक के प्रयोग ने भाषा सीखने की प्रक्रिया को विभिन्न भाषा माध्यमों से बिलकुल आसान बना दिया जिससे भाषायी निकटता का उदय हुआ, जिसके वज़ह से भाषायी एकता आना स्वाभाविक था ।
वर्तमान समय में मोबाइल फोन ने लैंडलाइन फोन का स्थान ले लिया है। मोबाइल फोन पर हिंदी समर्थन हेतु निरंतर कार्य चल रहा है । कई मोबाइल कंपनियाँ, सोनी, नोकिया, सैमसंग आदि हिंदी टंकण, हिंदी वाइस सर्च व हिंदी भाषा में इंटरफेस की सुविधा प्रदान कर रही है। इसके साथ ही आज आइ पैड पर हिंदी लिखने की सुविधा उपलब्ध है ।अंग्रेज़ी के साथ-साथ आज हिंदी भाषा का भी नेटवर्क़ पूरे विश्व मॆं फैलता जा रहा है । जागरण, वेब दुनिया, नवभारत टाइमस, विकिपिडिया हिंदी, भारत कोष, कविता कोष, गद्य कोष, हिंदी नेक्स्ट डॉट कॉम, हिंदी समय डॉट कॉम, आदि इंटरनेट साइटों पर हिंदी सामग्री देखी जा सकती है।आज विज्ञापन से संबंधित एसएमएस से खाता-शेष तक हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में प्राप्त किया जा सकता है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय के तहत कार्यरत सी-डैक (पुणे) बाईस भाषाओं में अपनी विभिन्न तकनीकी आयामों से वेबसाइटों, सॉफ्टवेयरों, रिपोर्टों, महाराष्ट्र सरकार की मराठी भाषा में तथा असम सरकार कीअसमिया भाषा में वेबसाइट निर्माणों, रिज़र्व बैंक के राजभाषा रिपोर्ट जेनेरेशन सॉफ्टवेयर(आरआरजीएस) निर्माण आदि के कार्य कर भाषायी एकता के क्रम में योगदान कर रहा है।
हिंदी के बड़े बाजार के नब्ज़ को देखते हुये माइक्रोसॉफ्ट ने अपने सॉफ्टवेयर उत्पादों से संबंधित सहायक साहित्य तथा मार्गदर्शक सूत्रों को विशेषज्ञों की सहायता से हिंदी में उपलब्ध कराने के प्रयत्न शुरू किया गया है । बहुप्रचलित विंडोज़ विस्टा व विडोंज 7 जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ एमएस वर्ड, पावर प्वाइंट, एक्सेल, नोटपैड, इंटरनेट एक्सप्लोरर, जैसे प्रमुख सॉफ्टवेयर उत्पाद अब हिंदी में कार्य करने की सुविधा प्रदान करते हैं। माइक्रोसॉफ्ट का लैंग्वेंज इंटर्फेस पैकेज स्थानीयकरण का बेहतर उदाहरण है ।
गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने अपनी वेबसाइट http://wwwrajbhashanicinपर राजभाषा हिंदी में कार्य करने को आसान बनाने के उद्देश्य से हिंदी में कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराये हैं, जिसमें से निम्नलिखित प्रमुखहैं-
  1. सर्वप्रथम हम लीला सॉफ्टवेयर की बात करेंगें।LILA अथार्त Learn Indian Languages with Artificial Intelligence, एक स्वंय शिक्षण मल्टीमीडिया पैकेज है। यह राजभाषा विभाग द्वारा तैयार किया गया एक निशुल्क सॉफ्टवेयर है जिसके द्वारा प्रबोध, प्रवीण व प्राज्ञ स्तर के हिंदी के पाठयक्रमों को विभिन्न भारतीय भाषाओं जैसे कन्नड़, मल्यालम, तमिल, तेलगु, बांग्ला आदि के माध्यम से सीखने, ऑनलाइन अभ्यास, उच्चारण सुधार, स्वमूल्यांकन, आदि की सुविधा उपलब्ध है।
  2. मंत्र अथार्त Machine Assisted Translation Tool सीडैक द्वारा विकसित एक मशीनी अनुवाद सॉफ्टवेयर है । यह राजभाषा विभाग द्वारा विकसित एक मशीनी साधित अनुवाद है जो राजभाषा के प्रशासनिक, वित्तीय, कृषि, लघु उद्योग, सूचना प्रद्योगिकी, स्वास्थ्य रक्षा, शिक्षा एवं बैंकिंग क्षेत्रों के दस्तावेज़ों का अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद करते हैं। मंत्र राजभाषा इंटरनेट संसकरण के डिजाइन व विकास थिन क्लाइंट आर्किटेक्चर पर आधारित है, इसमें संपूर्ण अनुवाद प्रक्रिया सर्वर पर होती है, इसलिये दूरवर्ती स्थानों में भी इंटरनेट उपलब्ध लो एंड सिस्टम पर भी दस्तावेज़ों का अनुवद करने की इस सुविधा का उपयोग किया जा सकता है ।
3.   श्रुतलेखन एक सतत स्पीकर इंडीपेंडेंट हिंदी स्पीच रिकगनिश्न सिस्टम है, जिसका विकास सीडैक, पुणे के एलाइड ए।आइ ग्रुप ने राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से किया गया है । यह स्पीच टू टेक्सट टूल है, इस विधि में प्रयोक्ता माइक्रोफोन में बोलता है तथा कंप्यूटर मेंमौजूद स्पीच टू टेक्स्ट प्रोग्राम उसे प्रोसेस कर पाठ/ टेक्स्ट में बदल कर लिखता है ।
  1. वाचांतर ध्वनि से पाठ में अनुवाद प्रणाली है जिसमें दो प्रौद्योगिकों का समावेश है । यह उपकरण अंग्रेज़ी स्पीच से हिंदी अथ अनुवाद हेतु उपलब्ध कराया जाता है ।
5.   सीडैक पुणे के तकनीकी सहयोग से ई-महाशब्दकोश का निर्माण किया गया जो की राजभाषा की साइट पर निशुल्क उपलब्ध है । यह एक द्विभाषी –द्विआयामी उच्चारण शब्दकोश हैं जिसके द्वारा हिंदी या अंग्रेज़ी अक्षरों द्वारा शब्द की सीधी खोज किया जा सकता है।
  1. कंठस्थ अथार्त Translation Tool सीडैक द्वारा विकसित एक मशीनी अनुवाद सॉफ्टवेयर है । यह राजभाषा विभाग की साइट  पर उपलब्ध हिंही ई टूल्स पर है। इस पर हिंदी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिंदी में सरलता से अनुवाद किया जा सकता है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें आपके द्वारा किया गया अनुवाद भविष्य के लिए सुरक्षित रहता है। इस में प्रशासनिक, वित्तीय, कृषि, लघु उद्योग, सूचना प्रद्योगिकी, स्वास्थ्य रक्षा, शिक्षा एवं बैंकिंग क्षेत्रों के दस्तावेज़ों का अनुवाद किया जा सकता है। इसके साथ-साथ यह शब्दकोश भी उपलब्ध करता है।
7.       हिंदी में शब्द संसाधन (word processing) के लिए विशेष रूप से तैयार ई-पुस्तक राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध है।मोबाइल फोन पर हिंदी समर्थन हेतु निरंतर कार्य चल रहा है।
अनुवाद दो भाषाओं के बीच सेतु का कार्य करता है। तकनीकी के उत्तरोत्तर विकास द्वारा मशीनी अनुवाद टूल बनाना संभव हो सका। आज विश्व के कई देशों के पास अत्यंत ही सक्षम अनुवाद टूल हैं। इनकी सहायता से वैश्विक मंचों पर विभिन्न देशों का आपसी मिलन आसानी से संभव हुआ है। भारत में भी अनुवाद टूल बनाने की दिशा में कई सॉफ्टवेयर बनाए गए हैं जिनमें सी-डैक, आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुंबई जैसी संस्थाओं की अहम भूमिका है।
इसके अलावा हिंदी में शब्द संसाधन के लिये विशेष रूप से तैयार ई-पुस्तक, राजभाषा विभाग की साइट पर उपलब्ध है ।भाषायी परस्पर आदान प्रदान के क्रम में भी तकनीकी विकास हुआ है। गूगल ट्राँसलेट के माध्यम से विभिन्न भाषाओं का अनुवाद किया जा सकता है । आज हमारे पास लिपियों को बदलने का सॉफ्ट्वेयर गिरगिट उपलब्ध है। भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद करने हेतु अनुसारक नाम का सॉफ्टवेयर मौजूद है। हिंदी ऑप्टिकल कैरेक्टर के माध्यम से हिडी ओसीआर इंपुट करके ओसीआर आउटपुट में 15-16 वर्ष के पहले की सामाग्री को भी परिवर्तित किया जा सकता है। सीडैक के श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर से भाषण/स्पीच  से पाठ रूप में पहुँचा जा सकता है। गूगल के टूलों में वाचक, प्रवाचक, गूगल टेक्स्ट टू स्पीच के जरिये पाठ से भाषन की सुविधा उपलब्ध है व गूगल के वायस टाइपिंग के जरिये स्पीच को टेक्स्ट में बदलने की सुविधा उपलब्ध है।गूगल वाइस टाइपिंग में हम गूगल डॉक्स के द्वारा हम अपनी आवाज के माध्यम टाइपिंग करने का आनंद उठा सकते हैं ।
माइक्रोसॉफ्ट इंडिक लैंग्वेज़ इनपुट टूल भारतीय भाषाओं हेतु एक सरल टाइपिंग टूल है। वास्तव में यह एक वर्चुअल की बोर्ड है जो कि बिना कॉपी-पेस्ट के झंझट के विंडोज में किसी भी एपलीकेशन में सीधे हिंदी में लिखने की सुविधा प्रदान करता है । यह सेवा दिसंबर 2009 में प्रारंभ हो गयी थी । यह टूल शब्दकोश आधारित ध्वन्यात्मक लिप्यांतरण विधि का प्रयोग करता है अथार्त हमारे द्वारा जो रोमन में टाइप किया जाता है, यह उसे अपने शब्दकोश से मिलाकर लिप्यांतरित करता है तथा मिलते-जुलते शब्दों का सुझाव करता है।इस कारण से प्रयोक्ता को लिपयंतरण स्कीम को याद नहीं रखना पड़्ता है जिससे पहली बार एवंशुरुआती हिंदी टाइप करने वालों के लिये काफी सुविधाजनक रहता है ।
आज चारों तरफ ‘डिजिटल भारत’ की बात हो रही है। प्रत्येक इंसान तक इन्टरनेट को पहुंचाने की चाहत रखने वाले महज 30 वर्षीयव्यक्ति व सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग के एजेंडे में भी गाँवों को डिजिटल दुनिया से जोड़ना प्रमुखता पा रहा है। हाल ही में (9-10 अक्टूबर 2014) दिल्ली में आयोजित ‘इंटरनेट ओआरजी समिट’ में उन्होंने कहा, “फेसबुक अपने कंटेंट को क्षेत्रीय भाषाओं में देने पर फोकस कर रहा है।”। यह ध्यातव्य है कि एक बिलियन यूजर्स में से फेसबुक के दूसरे सबसे बड़े मार्केट भारतहै जहाँ करीब 108 मिलियन एफ़बी यूजर्स हैं। मार्क जुकरबर्ग ने इस समिट में ‘कनेक्टिंग द अनकनेक्टेड’ अर्थात् ‘वैसे लोगों को इंटरनेट से जोड़ना जो इससे दूर तथा अनभिज्ञ हैं’ जैसा उद्देश्य रखते हुए पूरे समाज के लिए टेक्नोलॉजी की जरूरत बताई। यहाँ भी तकनीकी विकास में भाषायी एकता दिखती है। जब विभिन्न गाँव डिजिटल दुनिया से जुड़ेंगे तो वैश्विक व भारतीय परिक्षेत्र में विभिन्न गाँवों की विभिन्न भाषाएँ भी तकनीकी का हिस्सा होंगी और उनके बीच संप्रेषणीय आदान-प्रदान होगा जिसमें हम भाषायी एकता देख सकेंगे।
भाषायी परिप्रेक्ष्य में तकनीकी विकास की बात प्रिंटिंग प्रेस की बात के बिना अधूरी है। प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार ने सूचना एवं ज्ञान के प्रसार में क्रांति ला दी। वैसे तो विश्व की पहली प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी 11वीं सदी में चीन में विकसित हुई परंतु चलित प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी 13वीं सदी में ही विकसित हो सकी। उसके बाद जर्मनी के जोहानस गुटेनबर्ग द्वारा विकसित प्रिंटिंग प्रेस ने मुद्रण संसार नयी ऊर्जा दी। पुनर्जागरण काल के इस प्रेस के माध्यम से प्रतिदिन 3600 पृष्ठ तक की छपाई की जा सकती थी जो कि पिछली मशीनों की 2000 पृष्ठ प्रतिदिन की तुलना में काफी अधिक थी। पुनर्जागरण काल में हुए इस अनोखे आविष्कार ने जनसंचार (Mass Communication) की आधारशिला रखी। यूरोप में शिक्षा संपन्न एवं विशिष्ट लोगों की गोद से निकलकर जन सामान्य के बीच पहुंची और शिक्षित जनता की संख्या तीव्र गति से बढ़ी तथा मध्यवर्ग का उदय हुआ। पूरे यूरोप में अपनी संस्कृति के प्रति सजगता और राष्ट्रवाद की भावना के विकास के कारण उस समय के यूरोप की लिंगुआ फ्रैंका (लैटिन) की स्थिति कमजोर हुई तथा स्थानीय भाषाओं की स्थिति मजबूत हुई। प्राचीन और प्रतिष्ठित भाषाओं के साथ-साथ स्थानीय भाषाओं को भी सम्मान मिला। भारत के मुद्रण इतिहास में श्रीरामपुर प्रेस का उल्लेखनीय योगदान है, जिसमें हिंदी अक्षरों को विकसित किया गया तथा मिशनरियों के प्रचार सामग्री के रूप में बाइबिल का हिंदी अनुवाद बड़े स्तर पर छापा गया। स्वाधीनता आंदोलन में विभिन्न भारतीय भाषाओं में समाचार-पत्र निकालने वाले ये प्रेस आंदोलनकारियों के बहुत बड़े हथियार थे जिनकी समाप्ति के लिए ब्रिटिश सरकार ने वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जैसे कानून बनाए। ऐसा माना जाता है कि पहले भाषा का प्रयोग, उसके बाद लिपि एवं लेखन का प्रयोग एवं उसके बाद प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार गुणात्मक रूप से दुनिया के तीन सबसे बड़े आविष्कार हैं जिन्होंने ज्ञान एवं विद्या के प्रसार एवं विकास में भारी योगदान किया। इसी कड़ी में चौथा आविष्कार इंटरनेट को माना जाता है।
तकनीकी विकास शब्द जेहन में आते ही हमारा ध्यान इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति की ओर चला जाता है। यही वह दौर था जब मशीनों की वजह से इंसानों के जीवन और जीवन-शैली में व्यापक बदलाव आए। उत्पादन के सभी क्षेत्रों में मशीनों को विकसित किया जाने लगा और हमारी मशीनों पर निर्भरता बढ़ी। औद्योगिक क्रांति से उत्पादित माल के लिए बाजार की जरूरतों ने दुनिया भर के विभिन्न देशों के बीच की दूरियाँ कम कर दी जिसकी वजह से दुनिया भर की भाषाओं के लिए एक नया द्वार खुला। इसी दौरान 19वीं सदी की शुरुआत में कागज बनाने वाली मशीनों का आविष्कार हुआ जो भाषायी दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण थीं। इससे पूर्व लेखन के लिए प्रयुक्त होने वाले कागज का उत्पादन एक दुरूह कार्य था जिसमें वांछित गुणवत्ता प्राप्त करना काफी कठिन होता था। कागज उद्योग विकसित होने से लेखन और पठन का प्रचलन बढ़ा जो कि तमाम भाषाओं और साहित्य को अनंत काल तक लिखित रूप में सहेजने का माध्यम बना।
आधुनिक युग कंप्यूटर का युग है जिसने मनुष्य की कागज पर निर्भरता को काफी हद तक कम कर दिया है। कंप्यूटर के आगमन, प्रसार तथा इसपर हमारी बढ़ती निर्भरता ने कुछ समय तक के लिए भारत जैसी तीसरी दुनिया के देश के लिए स्थानीय भाषाओं के हास का संकट पैदा कर दिया था परंतु नित-नए तरीके से विकसित होते इस यंत्र ने ऐसी बाधाओं को पार कर लिया है और अब यह सभी भारतीय भाषाओं के प्रसार के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम उपलब्ध करा रहा है। कंप्यूटर ने टाइपिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले टाइपराइटर को चलन से बाहर किया परंतु शुरुआत में यह स्थानीय भाषाओं के लिए सहज नहीं था। इस समस्या का समाधान यूनिकोड के आगमन से हुआ जिसने हिन्दी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी कंप्यूटर पर काम करने के लिए आसान प्लेटफॉर्म निर्मित किया। इसके माध्यम से हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में ब्लॉग लिखे जाने लगे, जो कि अब तक केवल कंप्यूटर के आविष्कारक देशों की भाषाओं में लिखे जा रहे थे। आज हिंदी में अनेकों ब्लॉग लिखे और पढे जा रहे हैं, इतना ही नहीं समाचार पत्रों ने भी अब नियमित रूप से ब्लॉग छापने शुरू कर दिए हैं। यूनिकोड ने स्थानीय भाषाओं में टाइपिंग को आसान बनाकर इन्हें सोशल नेटवर्किंग साइट जैसे- ट्विटर, फेसबुक पर भी स्थापित कर दिया है।
निजी सैटेलाइट टीवी चैनलों के प्रसार ने भाषाई एकता को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनके फ्री टु एयर से डिश कनेकश्न और उसके बाद डाइरेक्ट टु होम तक के तकनीकी विकास ने जनता को उनकी भाषा में मनोरंजन व ज्ञान की पहुंच सुनिश्चित की है । यही बात रेडियो के निजी एफ़एम चैनलों के प्रसार एवं संचालन के साथ भी लागू होती है। आज भारत में 800 से ज्यादा टीवी चैनल और 250 तक एफ़एम चैनल उपलब्ध हैं । साथ ही ई समाचार-पत्रों के चलन ने पत्रकारिता को एक नया स्वरूप दिया है। आज अपनी मातृभाषा में समाचार-पत्र पढ़ने के लिए उस क्षेत्र विशेष में अनिवार्यतः उपस्थित रहना आवश्यक नहीं रहा। लगभग सभी प्रमुख समाचार-पत्रों के ई संस्करण इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। इनके अलावा हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में ई-बुक्स, ई-मैगजीन, ई-कॉमिक्स आदि का प्रसार भी काफी तेज गति से हो रहा है।
समेकित रूप से यह कहा जा सकता है कि आज हम तकनीकी युक्त वस्तुओं से चारों ओर से घिरे हुए हैं। तकनीकी विकास ने हमारी जीवन-शैली और समाज के ढांचे को भी प्रभावित किया है और भाषा भी इससे अछूती नहीं है।आज सूचना प्रौद्योगिकी की इस युग में हिंदी का महत्व पहले से अधिक हो गया है और यह महज राजकाज की संवैधानिक बाध्यता से निकलकर व्यवसायिक भाषा के रूप में उभर कर सामने आयी है ।
अनुवाद के क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का योगदान
सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों से शीघ्र गति से विकास हुआ है। यह मनुष्य को सोचने विचारने और संप्रेषण करने के लिए तकनीकी सहायता उपलब्ध कराती है। सूचना प्रौद्योगिकी के अंतर्गत कंप्यूटर के साथ-साथ माइक्रोइलेक्ट्रोनिक्स और संचार प्रौद्योगिकियाँ भी शामिल है और इसके विकास का नवीनतम रूप हमें इंटरनेट, मोबाइल, रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, उपग्रह प्रसारण, कंप्यूटर के रूप में दिखाई देता है। इन सबके द्वारा आज सूचना प्रौद्योगिकी ने पूरे विश्व को अपने आगोश में ले लिया है।कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के अंतर्गत प्राकृतिक भाषा संसाधन के क्षेत्र में विश्व भर में अनेक विशेषज्ञ प्रणालियों का विकास किया गया है, जिनके माध्यम से कंप्यूटर साधित भाषा शिक्षण, मशीनी अनुवाद और वाक्-संसाधन से संबंधित विभिन्न अनुप्रयोग विकसित किए गए हैं।
विभिन्न भारतीय भाषाओं के माध्यम से इंटरनेट पर हिंदी सीखने के लिए लीला सॉफ्टवेयर विकसित किया है। लीला सॉफ्टवेयर के माध्यम से हिंदी प्रबोध, प्रवीण और प्राज्ञ पाठयक्रम असमी, बांग्ला, अंग्रेज़ी, कन्नड़ मलयालम, मणिपुरी, मराठी, उड़िया तमिल, तेलुगू, पंजाबी, गुजराती, नेपाली और कश्मीरी के द्वारा इंटरनेट पर सीखे जा सकते हैं। हिंदी प्रबोध, प्रवीण एवं प्राज्ञ पाठक्रम के प्रशिक्षण के मूल्यांकन हेतु ऑन लाइन परीक्षा प्रणाली का विकास भी किया जा रहा है। इंटरनेट के माध्यम से ही परीक्षा दी जा सकेगी। द्विभाषी-द्विआयामी अंग्रेज़ी-हिंदी उच्चारण सहित ई-महाशब्दकोश का विकास किया गया है। ई-महाशब्दकोश में हर शब्द का उच्चारण दिया गया जो कि किसी और शब्दकोश में नहीं मिलता। हिंदी शब्द देकर भी उसका अंग्रेज़ी में अर्थ खोज सकते हैं। प्रत्येक अंग्रेज़ी और हिंदी शब्द के प्रयोग भी दिए गए हैं।आज सूचना प्रौद्योगिकी की विस्तृत भूमिका को देखते हुए विश्व स्तर पर हिंदी भौगोलिक सीमाओं को पार कर सूचना टेक्नोलॉजी के परिवर्तित परिदृश्य में विभिन्न जनसंचार माध्यमो तक पहुँच रही है।
राजभाषा हिंदी – अनुवाद एवं तकनीकी समावेश की सार्थकता
राजभाषा के संबंध में संविधान सभा के सदस्यों ने काफी चिंतन-मनन किया। तदनुसार 14-09-1949 को देवनागरी में लिखित हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग करना हमारा संवैधानिक दायित्व है । इस दायित्व की पूर्ति हमारी निष्ठा पर निर्भर करती है । हम सरकारी कार्यों से संबंधित लक्ष्यों को जिस तरह हासिल कर रहे हैं, उसी तरह हिंदी प्रयोग संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भी हमें निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए ।
राजभाषा स्वीकारने का मुख्य उद्देश्य है कि जनता का काम जनता की भाषा में संपन्न हो । प्रशासन की भाषा एक अलग तरह की भाषा होती है जो सीधे सीधे अपने विषय पर बात करती है । उसमें साहित्यिक या क्लिष्ट भाषा शैली के लिए कोई स्थान नहीं होता । अत: सरल हिंदी का प्रयोग करते हुए हम राजभाषा के प्रयोग को बढ़ावा दे सकते हैं । हिंदी ध्वनयात्मक भाषा है, जहाँ अंग्रेजी के उच्चारण के लिए भी शब्दकोश देखने की आवश्यकता पड़ती है वहीं हिंदी के लिए सिर्फ अर्थ देखने के लिए ही शब्दकोश की आवश्यकता पड़ती है। अंग्रेजी शब्दों की स्पेलिंग रटनी पड़ती है, जबकि हिंदी के शब्दों की वर्णमाला – स्वर व व्यंजन तथा बारह खड़ी को रटने से हिंदी के किसी भी शब्द को पढ़ना-लिखना सहज हो जाता है। यही कारण है कि हिंदी में किसी भी भाषा को लिखना या उसका उच्चारण करना सरल होता है। इस तथ्य की पुष्टि इस बात से भी होती है कि ‘माक्रोसॉफ्ट’ के मालिक बिल गेट्स ने हिंदी भाषा और लिपि को विश्व की अन्य भाषाओं की तुलना में सबसे अधिक वैज्ञानिक माना है।
सरकारी काम-काज में हिंदी के प्रगामी प्रयोग के क्षेत्र में प्रगति हुई है, किंतु अब भी लक्ष्य प्राप्त नहीं किए जा सके हैं। सरकारी कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग बढ़ा है किंतु अभी भी बहुत सा काम अंग्रेजी में हो रहा है। राजभाषा विभाग का लक्ष्य है कि सरकारी कामकाज में मूल टिप्पण और प्रारूपण के लिए हिंदी का ही प्रयोग हो। यही संविधान की मूल भावना के अनुरूप भी होगा। आज भी सरकारी कार्यालयों में राजभाषा हिंदी का कार्य अनुवाद के सहारे चल रहा है | प्राय: अनुवाद भाषा को कठिन बनाता है। इसका कारण दोनों भाषाओं पर अच्छी पकड़ की कमी या अनुवादक को हर विषय क्षेत्र की गहन जानकारी नहीं होना है | वैसे भी किसी को हर क्षेत्र की पूरी जानकारी होना भी संभव नहीं है |
चिकित्‍सा, अभियांत्रिकी, पारिस्थितिकी, अर्थशास्‍त्र आदि विभिन्‍न विषयों में होने वाले विकास व अनुसंधान के फलस्वरूप रोज़ नई संकल्पनाएँ जन्म ले रही हैं, नए शब्द गढ़े जा रहे हैं । चूँकि इन विषयों में रोज़ नए अनुसंधानविश्व के कोने-कोने में विभिन्न भाषाओं में हो रहे हैं अत: इनका साहित्य और उपलब्ध जानकारी मूल रूप से हिंदी में मौजूद नहीं है | इसके फलस्वरूप, बदलते वैश्विक परिदृश्य में अनुवादकों की भूमिका काफी बढ़ गई है। इन नए विषयों का अनुवाद करते समय अनुवादकों के लिए मात्र स्रोत भाषा व लक्ष्य भाषा पर ही पकड़ काफी नहीं है अपितु उनके लिए विषय का भी पूरा ज्ञान जरूरी है | परन्तु, यह व्यावहारिक भी नहीं है कि अपेक्षा की जाए कि एक अनुवादक विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि सभी विषयों में पारंगत हो | निस्संदेह यह पूर्णतः अनुवादक की प्रतिभा पर निर्भर करता है कि वह जिस भाषा से और जिस भाषा में अनुवाद कर रहा है उन भाषाओं पर उसका कितना अधिकार है और इन भाषाओं की अनुभूतियों में वह कितनी तारतम्‍यता कायम रख सकता है। यहाँ यह जरूरी है कि विषय को समझने के लिए अनुवादक को उस विषय से संबंधित विशेषज्ञ की सहायता ले लेनी चाहिए क्योंकि विषय ज्ञान के बिना अनुवाद में प्राण नहीं फूके जा सकते | आदर्श स्थिति तो यह होगी कि अनुवाद ऐसे विषय विशेषज्ञ से कराया जाए जिसे स्रोत भाषा व लक्ष्य भाषा का भी पूरा ज्ञान हो | ऐसे तकनीकी साहित्य का अनुवाद करने के लिए उन्हें अच्छा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए | यदि ऐसा हो पाता है तो इससे विषय की मौलिकता बनी रहेगी |
कार्यालयी भाषा की दृष्टि से एक सफल अनुवादक वही है जो अनुदित पाठ को सरल व स्पष्ट बनाए रखे। उसे किसी विषय को स्पष्ट करने के लिए अतिरिक्त वाक्य जोड़ने से परहेज नहीं करना चाहिए। सूचना प्राद्यौगिकी के बदलते परिवेश में हिंदी भाषा ने अपना स्थान धीरे-धीरे प्राप्त कर लिया है। अब हिंदी की उपादेयता पर कोई भी प्रश्न चिह्न लगा नहीं सकता। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने हिंदी के लिए विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर विकसित किए हैं। ‘कंप्यूटर पर हिंदी में काम करते समय अक्सर लोगों को word, Excel, Power point आदि में तैयार किये गये दस्तावेजों में प्रयोग किए जाने वाले फोंटस की इनकम्पैटिबिलिटि के कारण दस्तावेजों के स्‍थानांतरण/विनिमय की समस्‍या का सामना करना पड़ता है।
फ़ेसबुक पर कई मित्र इंग्लिश में कुछ लिखते हैं। मेरे लिए यह कोई समस्या नहीं है। पर सब तो इंग्लिश नहीं जानते। और तो और, एक बार मुझे एक संदेश थाई भाषा में मिला। अब? इन सब जगहों पर एक सुविधा मिलती है – see translation। यह अनुवाद कोई आदमी नहीं करता, इन कंपनियों की मशीनें करती हैँ – वह भी तत्काल। ऐसे में उनके परिणामों को देखना, उनकी कमियाँ समझना, और इन मशीनों की क्षमता में उत्तरोत्तर बढ़त देखना हम सब की उत्सुकता का विषय है।गूगल ट्रांसलेट आज 103 भाषाओं में परस्पर अनुवाद करता है । 
राजभाषा हिंदी और कंप्यूटर स्थानीयकरण
हिंदी में कंप्यूटर स्थानीयकरण का कार्य काफी पहले शुरू हुआ और अब यह आन्दोलन की शक्ल ले चुका है। हिंदी सॉफ्टवेयर लोकलाइजेशन का कार्य सर्वप्रथम सी-डैक (CDAC) द्वारा 90 के दशक में शुरू किया गया था। हिंदी भाषा के लिए कई संगठन काम करते हैं जिसमें सी-डैक, गृह मंत्रालय का राजभाषा विभाग, केन्द्रीय हिंदी संस्थान और अनेकों गैर-सरकारी संगठन जैसे सराय, इंडलिनक्स आदि प्रमुख हैं। इनमें से एक इंडलिनक्स ने भी अपना काम हिंदी से ही शुरू किया। हिंदी के लिए विभिन्न परियोजनाओं को एक सूत्र में पिरोने के उद्देश्य से सोर्सफोर्ज वेबसाइट पर हिंदी प्रोजेक्ट भी प्रारंभ किया गया है। यहाँ मुख्यत: फेडोरा, ग्नोम, केडीई, मोजिला, और ओपनऑफिस का हिंदी स्थानीयकरण किया जा रहा है। दूसरी ओर दिल्ली स्थित ’सराय’ नामक गैर सरकारी संस्था ने भी हिंदी में कंप्यूटर स्थानीयकरण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पुणे स्थित रेड हैट भी कंप्यूटर पर हिंदी को बढ़ावा दे रही है।
हिंदी के बड़े बाज़ार की नब्ज़ को देखते हुए व्यावसायिक रूप में हिंदी में स्थानीयकरण को सबसे अधिक बढ़ावा बृहत साफ्टवेयर संस्था माइक्रोसाफ्ट ने दिया है। माइक्रोसाफ्ट ने अपने साफ्टवेयर उत्पादों से संबंधित सहायक साहित्य तथा मार्गदर्शक सूत्रों को विशेषज्ञों की सहायता से हिंदी में उपलब्ध कराने के प्रयत्न शुरू किए हैं। बहुप्रचलित विंडोज़ विस्टा और विंडोज़ सेवन जैसे आँपरेटिंग सिस्टम के साथ वर्ड, पावर प्वाइंट, एक्सेल, नोटपैड, इंटरनेट एक्स्प्लोरर जैसे प्रमुख साफ्टवेयर उत्पाद अब हिंदी में काम करने की सुविधा देते हैं। लेखन में त्रुटियों को दूर करने के लिए आवश्यक “शब्द-कोश” जैसी सुविधाएँ हिंदी में उपलब्ध है और उनके कार्यान्वयन संबंधी प्रयोग चालू हैं। माइक्रोसाफ्ट का लैंग्वेज इंटरफेस पैक स्थानीयकरण का बेहतरीन उदाहरण है।
इंटरनेट पर राजभाषा  हिंदी
इंटरनेट पर हिंदी को भारत की वेबदुनिया (http://wwwwebduniacom/) नामक वेबसाइट ने सर्वप्रथम स्थान दिया। वेबदुनिया ने हिंदी में में लिखने की सुविधा के साथ हिंदी में मेल, समाचार, ज्योतिष, शिक्षा आदि की सुविधाएं प्रारंभ की। दूसरी ओर इंटरनेट पर विश्व प्रसिद्ध खोज इंजन गूगल और याहू सरीखी कंपनियों ने स्थानीयकरण के माध्यम से हिंदी सहित कई भारतीय भाषाओं में अपनी सुविधाएँ देना शुरू किया है। गूगल लैब्स इंडिया ने हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के लिए कई सुविधाजनक अनुप्रयोग उपलब्ध करवाएँ हैं। जिसमें गूगल का संपादित्र (Input Method Editor), ऑनलाइन लिप्यंतरण सुविधा, हिंदी वर्तनी जाँचक, गूगल ट्रांस्लेट, गूगल बुक्स और हिंदी में ब्लॉगर आदि सुविधाए महत्वपूर्ण हैं। गूगल ट्रांस्लेट ने हिंदी अनुवाद को सरल बना दिया है। इससे समूचे वेबपेजों का सरल हिंदी अनुवाद संभव हो गया है। हिंदी में वेब पृष्ठों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। दैनिक जागरण समाचार समूह के साथ जुड़ कर याहू ने हिंदी खबरों को देश-दुनिया तक पहुँचाया है।
राजभाषा हिंदी और ई-शासन
भारत सरकार की राष्ट्रीय ई-शासन योजना का उद्देश्यय भारत में ई-शासन (E-Governance) की नींव रखना तथा इसकी दीर्घावधिक अभिवृद्धि के लिए प्रेरणा उपलब्ध कराना है। ई- शासन का विकास लगातार प्रशासन के सूक्ष्मतर पहलुओं को लघु रूप देने के लिए किए गए उपायों, जैसे नागरिक केन्द्रित, सेवा उन्मुखीकरण और पारदर्शिता के लिए सरकारी विभागों के कंप्यूटरीकरण से प्रारंभ हुआ है। इस योजना के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र की जानकारियों को इंटरनेट पर सरल, विश्वसनीय पहुंच-संभव बनाने के लिए दूर-दराज के गांवों तक मजबूत देशव्यापी तंत्र को तैयार किया जा रहा है और अभिलेखों का बडे़ पैमाने पर डिजिटाइजेशन किया जा रहा है। इसका अंतिम लक्ष्य नागरिक सेवाओं को नागरिकों के घरों के अधिक समीप लाना है। इस प्रकरण में राजभाषा हिंदी की स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। हिंदी भाषी क्षेत्रों में सरकारी अभिलेख जैसे भूमि, वाहन, कृषि संबंधी जानकारियाँ इंटरनेट पर इस योजना के तहत हिंदी में जनता को उपलब्ध करवाई जा रही हैं। एक ओर सरकारी प्रतिष्ठानों द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 संबंधी सार्वजनिक सूचनाएँ हिंदी के माध्यम से अपनी वेबसाइटों पर उपलब्ध करवाने की प्रक्रिया चल रही है। तो दूसरी भारत सरकार के भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (भा।वि।प।प्रा।) द्वारा नागरिकों के लिए बनाए जा रहे आधार कार्ड में हिंदी का अधिकाधिक इस्तेमाल हो रहा है। आधार 12 अंकों की एक विशिष्ट संख्या है जिसे भा।वि।प।प्रा। सभी निवासियों के लिये जारी कर रहा है। संख्या को केन्द्रीकृत डाटा बेस में संग्रहित किया जा रहा है एवं प्रत्येक व्यक्ति की आधारभूत जनसांख्यिकीय एवं बायोमैट्रिक सूचना – फोटोग्राफ, दसों अंगुलियों के निशान एवं आंख की पुतली की छवि के साथ लिंक किया जा रही है। ये सभी सूचनाएँ हिंदी माध्यम में उपलब्ध करवाई जा रही हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी युग और हिंदी का बढ़ता वर्चस्व

आज पूरी दुनिया में इन्टरनेट का उपयोग हो रहा हैं, भले ही कुछ देशों में यह प्रयोग कम हैं और कुछ में ज्यादा। भारत की 12 % से भी कम आबादी इन्टरनेट का उपयोग करती हैं। यह अनुपात विकसित देशों में 80 % आबादी की तुलना मे काफी कम हैं। सूचना प्रोद्योगिकी की शुरुआत भले ही अमेरीका में हुई हो, फिर भी भारत की मदद के बिना यह आगे नहीं बढ़ सकती थी। गूगल के एक वरिष्ट अधिकारी की ये स्वीकारोक्ति काफी महत्वपूर्ण हैं की आने वाले कुछ वर्षों में भारत दुनिया के बड़े कंप्यूटर बाजारों में से एक होगा और इन्टरनेट पर जिन तीन भाषाओं का दबदबा होगा वे हैं- हिंदी, मेंडरिन और अंग्रेजी। इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती हैं कि आज भारत में ८ करोड़ लोग इन्टरनेट का उपयोग करते हैं इस आधार पर हम अमेरिका, चीन और जापान के बाद ४ वे नंबर पर हैं। जिस रफ़्तार से यह संख्या बढ़ रही हैं, वह दिन दूर नहीं जब भारत में इन्टरनेट उपयोगकर्ता विश्व में सबसे अधिक होंगे।
इन्टरनेट पर हिंदी के पोर्टल अब व्यावसायिक तौर पर आत्मनिर्भर हो रहे हैं। कई दिग्गज आईटी कंपनियां चाहे वो याहू हो, गूगल हो या कोई और ही सब हिंदी अपना रहीं हैं। माइक्रोसॉफ्ट के डेस्कटॉप उत्पाद हिंदी में उपलब्ध हैं। आई बी ऍम,सन-मैक्रो सिस्टम, ओरक्ल आदि ने भी हिंदी को अपनाना शुरू कर दिया हैं। इन्टरनेट एक्सप्लोरर, नेट्स्केप, मोज़िला, क्रोम आदि इन्टरनेट ब्राउज़र भी खुल कर हिंदी का समर्थन कर रहे हैं। आम कंप्यूटर उपभोक्ताओं के लिये कामकाज से लेकर डाटाबेस तक हिंदी में उपलब्ध हैं।
भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास (टीडीआईएल)
"एक ज्ञानवान समाज के निर्माण के लिए आम जनता को सक्षम बनाना और भाषा की बाधा के बिना संचार सुनिश्चित करना और ज्ञान श्रृंखला का संचालन करना"
भारत जैसे बहुभाषी देश में अधिक से अधिक लोगों को उनकी अपनी भाषा में सूचना और सेवाओं के लिए सार्वभौमिक पहुँच उपलब्ध कराना अंतर्निहित प्राथमिक चिंता और चुनौतीपूर्ण विषय है । चूंकि दुनिया भर में प्रौद्योगिकी क्रांति सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के आसपास केंद्रित है, अंत: मानव भाषा प्रौद्योगिकी (एचएलटी) के क्षेत्र में उन्नति से लोगों के लिए यह सुविधाजनक हो गया है कि वे मशीनों के साथ बातचीत कर सकते हैं। चूंकि भाषा विविधता का समर्थन करने के लिए उपकरण और भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सूचना सशक्तिकरण की अहम जरूरतों को पूरा करते हुए इसमें विविध पृष्ठभूमि वाले लोगों, एक अनपढ़ भूमि टिलर जो अपने छोटे से देश के प्रासंगिक भू-अभिलेखों को जानना चाहते से लेकर एक उच्च अंत कंप्यूटर पेशेवरों जो समस्या फिक्सिंग पर ध्यान केंद्रित कर अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं में ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, को लाभान्व‍ित करने की शक्ति है।
भारत में, बहुभाषी वेब सामग्री त्वरित विकास के लिए तैयार है और इसलिए,  वहाँ उपयोगकर्ता के अनुकूल और लागत प्रभावी उपकरण, अनुप्रयोगों और ऐसी सूचना सामग्री प्रदान करना एक बड़ी चुनौती है, जो विभिन्न भारतीय भाषाओं में आईसीटी बुनियादी अवसंरचना के लिए पहुँच सक्षम बनाते हैं । इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम  (भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास) टीडीआईएल (एक नई विंडो में खुलने वाली वेबसाइट)(link is external) शुरू किया है, जिसका उद्देश्य भाषा बाधा के बिना मानव-मशीन संपर्क की सुविधा के लिए सूचना संसाधन उपकरण और प्रौद्योगिकी का विकास; बहुभाषी ज्ञान संसाधनों का सृजन और मूल्यांकन और अभिनव उपयोगकर्ता उत्पादों और सेवाओं को विकसित करने के लिए उन्हें एकीकृत करना है। प्राथमिक उद्देश्यों में सभी 22 आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त भारतीय भाषाओं के लिए सॉफ्टवेयर उपकरण और अनुप्रयोग विकसित करना, भविष्य की प्रौद्योगिकियों के सहयोगी विकास में योगदान करना जिसके परिणामस्वरूप अभिनव उत्पाद और सेवाएं उत्पन्न होंगी, भाषा प्रौद्योगिकी उत्पादों के प्रसार हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करना और सभी स्तरों पर समाधान और मानकीकरण सेवाएं उपलब्ध कराना है ।किए गए अन्य प्रमुख प्रयासों में क्रॉस लिंगुअल इंफर्मेशन एक्सेस एंड रिट्रिवल, मानव मशीन इंटरफेस प्रणाली, टेक्स्ट टू स्पीच सिस्टम (टीटीएस), भाषा प्रसंस्करण और वेब उपकरण, भारतीय भाषाओं में आईटी उपकरण और समाधानों का अनुकूलन, भाषा प्रौद्योगिकी में मानव संसाधन विकास शामिल हैं।
आईटी में राजभाषा हिंदी की प्रगतिhttp://media.webdunia.com/include/_mod/site/theme-6/img/font_dec.pnghttp://media.webdunia.com/include/_mod/site/theme-6/img/font_inc.png
सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी के लिए 2014 कई तरह की सफलताओं से भरा रहा। यदि यह कहा जाए कि इस वर्ष हिंदी ने आईटी में मील के कई पत्थर गाढ़े, तो गलत नहीं होगा। आज कंप्यूटर, मोबाइल फ़ोन, इंटरनेट, टेलीविजन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि हर क्षेत्र में हिंदी की मौजूदगी बढ़ती ही जा रही है जो कि एक सुखद प्रगति है। यह एक ऐसा पड़ाव है जिसने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि भारत में पैर जमाने हैं, तो राष्ट्रभाषा हिंदी के पैर पकड़े बिना यह संभव नहीं। यही कारण है कि दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियाँ अपने उत्पादों का भारतीयकरण कर ही हैं। इनमें वे कंपनियाँ भी शामिल हैं जिनके उत्पाद पहले से भारत में मौजूद हैं लेकिन उनकी मुख्य भाषा अंग्रेज़ी है। 
       नई वेबसाइटें अब यूनिकोड के साथ आ रही हैं तथा पुरानी वेबसाइटें ट्रूटाइप फ़ॉन्ट से यूनिकोड में परिवर्तन कर रही हैं। यदि साहित्यिक और कुछ भाषा केंद्रित वेबसाइटों को छोड़ दिया जाए तो एक और काबिले गौर बात यह है कि अब ज्यादा से ज्यादा वेबसाइटें अंग्रेजी के साथ–साथ भारतीय भाषाओं में भी लॉन्च हो रही हैं जिनमें हिंदी प्रमुख है। पहले वेबसाइटों की भाषा केवल अंग्रेज़ी ही हुआ करती थी।
राजभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार में हिंदी ब्‍लॉगर की भूमि‍का
आज कल हम देखते हैं कंप्‍यूटर पर कई ब्‍लॉग हैं, जो हिंदी में हैं और नव-नवीन वि‍षयों पर अपने ज्ञान का प्रसार कर रहे हैं। इसमें हिंदी भाषा, ज्ञान-वि‍ज्ञान, तकनीकि‍-प्रौद्योगि‍की, कथा, कहानि‍यॉं, शि‍क्षा, स्‍वास्‍थ्‍य, बाल जगत और अन्‍य वि‍षयों के साथ-साथ इति‍हास, भूगोल और भौति‍क वि‍ज्ञान जैसे कई वि‍षयों का समावेश हैं। वि‍शेष: अनुनाद सिंह जी ने इस क्षेत्र में भगीरथ प्रयास कि‍या है। कंप्यूटर पर ऐसे कई वि‍षयों पर आज जानकारी उपलब्‍ध हो गई जि‍न वि‍षयों की पुस्‍तकें प्राय: दुर्लभ समझी जाती है। प्राचीन ग्रंथों के पीडीएफ फाइलों का ब्‍लॉगों के माध्‍यम से आसानी से डाउनलोड कि‍या जा सकता है। इससे अध्‍ययन और अनुसंधान दोनों में सहायता हो रही है। खासकर ऐसी पुस्‍तकें जि‍नकी प्रति‍यां आज कि‍सी लाइब्ररी में भी मि‍लना मुश्‍कि‍ल हैं ऐसे कई वि‍षयों की पुस्‍तकों का संकलन आसानी से उपलब्ध हो जाता है। साथ ही ब्‍लॉग बनाने वाले व्‍यक्‍ति के विचार और दर्शन से भी परि‍चि‍त हो सकते हैं। हिंदी में लि‍खी गई बहुत सी पुस्‍तकें आज भी आम जन तक नहीं पहुँच पाई हैं, जि‍न्‍हें ब्‍लॉग पर दी गई लिंक के माध्‍यम से सरलता से डाउनलोड कि‍या जा सकता है, सोशल मीडि‍या पर शेयर कि‍या जा सकता है और अपने पाठकों को इसकी लिंक भी भेजी जा सकती हैं। वि‍कि‍पीडि‍या के अनुसार हिन्दी का पहला चिट्ठा ‘नौ दो ग्यारह’ माना जाता है, जिसे आलोक कुमार ने पोस्ट किया था। ब्लॉग के लिये चिट्ठा शब्द भी उन्हीं ने प्रदिपादित किया था जो कि अब इण्टरनेट पर इसके लिये प्रचलित हो चुका है। चिट्ठा बनाने के कई तरीके होते हैं, जिनमें सबसे सरल तरीका है, किसी अंतर्जाल पर किसी चिट्ठा वेबसाइट जैसे ब्लॉगस्पॉट या लाइवजर्नल या वर्डप्रेस आदि जैसे स्थलों में से किसी एक पर खाता खोल कर लिखना शुरू करना। एक अन्य प्रकार की चिट्ठेकारी सूक्ष्म चिट्ठाकारी कहलाती है। इसमें अति लघु आकार के पोस्ट्स होते हैं।आज के संगणक जगत में चिट्ठों का भारी चलन चल पड़ा है। कई प्रसिद्ध मशहूर हस्तियों के चिट्ठा लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं और उन पर अपने विचार भी भेजते हैं। चिट्ठों पर लोग अपने पसंद के विषयों पर लिखते हैं और कई चिट्ठे विश्व भर में मशहूर होते हैं जिनका हवाला कई नीति-निर्धारण मुद्दों में किया जाता है। चिट्ठा का आरंभ १९९२ में लांच की गई पहली जालस्थल के साथ ही हो गया था। आगे चलकर १९९० के दशक के अंतिम वर्षो में जाकर चिट्ठाकारी ने जोर पकड़ा। आरंभिक चिट्ठा संगणक जगत संबंधी मूलभूत जानकारी के थे। लेकिन बाद में कई विषयों के चिट्ठा सामने आने लगे। वर्तमान समय में लेखन का हल्का सा भी शौक रखने वाला व्यक्ति अपना एक चिट्ठा बना सकता है, चूंकि यह निःशुल्क होता है और अपना लिखा पूरे विश्व के सामने तक पहुंचा सकता है।
देवनागरी लिपी और सूचना प्रौद्योगिकी
सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देवनागरी लिपी के मानकीकरण और संवर्धन आज की आवश्यकता है। इस काम को अंजाम देने के लिए भाषाविदों औरप्रौद्योगिकीविदों को एक साथ बैठ कर इस समस्या को सुलझाना होगा। इस संबंध में सरकार का सहयोग भी अपेक्षित होगा। इस विषय को लेकर विशेषज्ञों के बीच चर्चा चल रही है। गुड़गांव में एक संगोष्ठी भी आयोजित की गई।सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देवनागरी लिपी के मानकीकरण और संवर्धन के लिए स्वनिमों (ध्वनियों) और लेखिमों (वर्णों) में मैपिंग अर्थात मिलान करने की आवश्यकता है। भारतीय भाषाओं और विदेशी भाषाओं की ध्वनिओं के लिए परिवर्द्धित देवनागरी लिपि विकसित करने और उसे विश्‍वस्तरीय लिपि के रूप में प्रसारित करने की ज़रूरत है।इसके अलावा देवनागरी लिपि के मानकीकरण की दिशा में भी ठोस क़दम उठाया जाना चाहिए। फ्रांस में “डब्ल्यू-थ्री-सी” मानकीकरण की संस्था है, जो विश्‍व की प्रमुख भाषाओं का प्रौद्योगिकीय दृष्टि से मानकीकरण कर रही है।इस उद्देश्‍य की सफलता के लिए तकनीकीविदों और भाषाविदों के बीच तालमेल की बहुत आवश्यकता है। भाषाविदों और प्रौद्योगिकीविदों को एक साथ बैठ कर इस समस्या को सुलझाना होगा। उच्चारण और वर्तनी में समन्वय भी लाना ज़रूरी है। हिन्दी की ध्वनिओं, उनके विन्यास और प्रस्तुतिकरण में देवनागरी की जो शक्ति है वह सभी भाषाओं को अपने भीतर समेटने में सक्षम है।
निष्कर्षत: यह सत्य है कि वर्तमान भारतीय समाज में राजभाषा हिंदी की भूमिका में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। सरकारी फाइलों और कागज़ी दस्तावेज़ों से निकल कर अब यह आम लोगों के मोबाइल और पर्सनल कंप्यूटरों तक पहुँच रही है। कहा जा सकता है कि राजभाषा हिंदी में सूचना प्रौद्योगिकी और कंपयूटर स्थानीयकरण ने नई उर्जा का संचार किया है। वह दिन दूर नहीं है कि जब राजभाषा हिंदी में सभी नागरिक सेवाएँ और सरकारी काम करना सहज और सुलभ होगा।

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