Tuesday, 22 November 2016

राष्ट्रीय सम्पर्क की भाषाः हिंदी

सुबोध कुमार सिंह
राष्ट्रीय सम्पर्क की भाषाः हिंदी 
भारत एक विविधताओं से परिपूर्ण राषट्र होते हुए भी अपनी एकल-सांस्कृतिक-चेतना के लिए विश्वविख्यात हैं । हमारी संस्कृति किसी धर्म या जाति की नहीं, अपितु हमारे भारतीय होने की द्योतक है । किसी भी संस्कृति के चार स्तंभ-राष्ट्रबाद, भाषा, आचार-विचार एवं परम्पराएं एक रथ के चार पहियों की तरह होते हैं । किसी भी देश की सांस्कृतिक विशेषताएं उसकी भाषा में ही संचित होती है ।
    हिंदी और इसकी बोलियाँ उत्तर एवं मध्य भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं । भारत और अन्य देशों में लगभग 75 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं । फिजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की अधिकतर और नेपाल की कुछ जनता हिंदी बोलती है । आज विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या सबसे अधिक है ।
    हिंदी राष्ट्रभाषा, राजभाषा, सम्पर्क भाषा, जनभाषा के सोपानों को पार कर विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है । भाषा विशेषज्ञों की यह भविष्यवाणी, हिंदी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तरराष्ट्रीय महत्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिंदी भी प्रमुख होगी ।
    भारत की भाषायी स्थिति और उसमें हिंदी के स्थान को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि हिंदी आज भारतीय जनता के बीच राष्ट्रीय संपर्क की भाषा है । हिंदी की भाषागत विशेषता भी यह है कि उसे सीखना और व्यवहार में लाना अन्य भाषाओं के अपेक्षा ज्यादा सुविधाजनक और आसान है । हिंदी भाषा में एक विशेषता यह भी है कि वह लोक भाषा की विविधताओं से संपन्न है, बड़े पैमाने पर अशिक्षित लोचदार भाषा है, जिससे वह दूसरी भाषाओं में शब्दों, वाक्य संरचना और बोलचालजन्य आग्रहों को स्वीकार करने में समर्थ है । इसके अलावा ध्यान देने की बात यह है कि हिंदी में आज विभिन्न भारतीय भाषाओं का साहित्य लाया जा चुका है । विभिन्न भारतीय भाषाओं के लेखकों को हिंदी के पाठक जानते हैं, उनके बारे में जानते हैं । भारत की भाषायी विविधता के बीच भारत की भाषायी पहचान मुख्यतः हिंदी है । भारत के औद्योगिक प्रतिष्ठानों के आधार पर बने नगरों और महानगरों में भारत की राष्ट्रीय एकता और सामाजिक संस्कृति का स्वरुप देखने को मिलता है । इसी प्रसंग में कहना चाहता हूं कि यदि हिंदी-क्षेत्र के राज्य औद्योगिक रूप से और ज्यादा विकसित होते तो राष्ट्रीय एकता और भाषायी एकता का आधार और विस्तृत और मजबूत होता । लेकिन आज की स्थिति में भी भारत में हिंदी की जो राष्ट्रीय भूमिका है, उतना भी उसके अंतर्राष्ट्रीय महत्व को महसूस कराने में समर्थ है ।
    साम्राज्यवाद ने खुद मनुष्य का जो व्यापार अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में किया, उसके फलस्वरूप भारत से बड़ी तादाद में मजदूर दूसरे देशों में से जाे गे । मारिशस, फिजी, दक्षिम अफ्रीका, के अन्य कई देश, व्रिदिश गायना, त्रिनिडाड, सूरीनाम, न्यूजीलैंड आदि देशों में जो बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग हैं, वे मुख्यतः हिंदीभाषी हैं अथवा यह कहें कि वे हिंदी जानते हैं, हिंदी पढ़ते-लिखते हैं । नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और म्यांमार(वर्मा) में तो स्वभावतः हिंदी भाषी जनता की संख्या बहुत बड़ी हैं आधुनिक युग में नई संचार-व्यवस्था, आवागमन के नए साधनों की उपलब्धता और जीवन की नई जरूरतों से प्रेरित होकर इंग्लैंड, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, रूस और यूरोप के अन्य अनेक देशों में बी भारत से जा बसे लोगों में हिंदीभाषी लोग आज रह रहे हैं । हिंदीभाषियों को अथवा हिंदी जानने वालों की यह विशाल संख्या हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय संपर्क का साक्षात्कार कराती है । संख्या की दृष्टि से हिंदी दुनिया की तीन बड़ी भाषाओं में एक है, शेष दो हैं अंग्रेजी और चीनी । कुछ लोग तो कहते हैं कि हिंदी जाननेवालों की संख्या दुनिया में अंग्रेजी जाननेवालों से ज्यादा है ।
    आँकड़ों के खेल से अलग हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय भूमिका को स्थापित करने वाले कई तथ्य और हैं जो ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य हैं । एक बात तो यह है कि हिंदी भाषा के साहित्य ने पिछली एक सदी में बड़ी तेजी से विकास किया है, वह कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना तथा चिंतनपरक साहित्य के क्षेत्रों में इतनी विकसित हुई है, इतनी ऊपर उठी है, कि आज वह किसी भी भाषा के श्रेष्ठ साहित्य का मुकाबला कर सकती है । प्रेमचंद्र, निराला, जयशंकर प्रसाद, रामचंद्र शुक्ल, राहुत सांस्कृत्यायन, मुक्तिबोध, नागार्जुन आदि के लेखन के अनुवाद दुनिया की विभिन्न भाषाओं में हुए हैं । इस प्रक्रिया से हिंदी के जरिए दुनिया की जनता से भारत की जनता का संवेदनात्मक संबंध कायम हुआ है । यह संबंध रचनात्मक और संवेदनात्मक तो है ही, सांस्कृतिक विनियम का एक रूप भी प्रस्तुत करता है । विगत साहित्य में भारतीय चेतना का प्रतिनिधित्व सबसे अधिक हिंदी ही करती है । इतना ही नहीं, हिंदी के माध्यम से दूसरी भाषाओं के साहित्य का परिचय भी विश्व का हिंदी-संप्रदाय प्राप्त करता है । यह एक बड़ा कारण है कि दुनियाभर में हिंदी का अध्ययन आज वे लोग भी कर रहे हैं, जो हिंदीभाषी या भारतीय मूल के नहीं हैं । इस प्रकार आज की परिस्थिति में हिंदी की एक अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी विकसित हो रही है ।
    उपयुक्त तथ्यों और बातों से अलग अत्यंत महत्वपूर्ण बात यह है कि आज के वित्तीय पूंजीवाद ने जो विशाल विश्व बाजार विकसित किया है, उसमें भारत का विश्ष स्थान है । भारत में पूंजीवाद का विकास अवरोधों के बीच हुआ है, फिर भी देश के आजाद होने के बाद पूर्व सोवियत संघ तथा समाजवादी देशों की मदद से राष्ट्रीय पूंजीवाद का आर्थिक आत्मनिर्भरता का जो विकास हुआ उससे भारत में एक बड़े मध्य वर्ग और नव धनाढ्य वर्ग का विकास हुआ है, जिसकी आवादी कम से कम पच्चीस करोड़ है । अमेरिका की बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिनिधियों तथा उसके विचारकों और सिद्धांतकारों ने कुछ साल पहले भारत के बारे में एक सेमिनार आयोजित करके इस बात पर विचार किया कि भारत में उनके लिए क्या गुंजाइश है । उनका निष्कर्ष यह था कि भारत मध्यवर्ग, उच्च वर्ग और नवधनाढ्य वर्ग के पच्चीस-तीस करोड़ लोग उनके माल का बाजार बनने के लिए कापी हैं । अब यह देखें कि पच्चीस-तीस करोड़ में हिंदीभाषियों की संख्या बीस करोड़ से कम तो नहीं है । अतः इस जनता को अपने उपभोक्ता बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करनेवाली कंपनियों के प्रतिनिधियों एवं एजेंटों को हिंदी सीखनी है । यदि भारत का इतना आर्थिक विकास न हुा होता, तो हिंदी का रुतबा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इतना न होता, जितना आज हमें अनुभव होता है । बहुराष्ट्रीय कंपनियां और इजारेदार घरानों को अपने माल के प्रचार के लिए हिंदी का सहारा लेना बड़ता है । उद्योग का एक बड़ा क्षेत्र है फिल्म और इलेक्ट्रोनिक जनसंचार माध्यम । हिंदी फिल्म और इलेक्ट्रोनिक माध्यम में हिंदी चैनल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का प्रसार करके हिंदी के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय बाजार बनाने की भूमिका अदा करते हैं । यह है हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय भूमिका का ठोस आधार, जिस पर खड़ी होकर हिंदी अंतर्राष्ट्रीय संपर्क की भाषा बन रही है । ब्रिटिश साम्राज्य के प्रभाव के अवशेष और अमेरिकी साम्राज्य की वर्तमान दबंगई के कारण यह बात फैलाई जाती रही है कि अंग्रेजी विश्व भाषा है या विश्व बाजार की भाषा है । यह अर्धसत्य है । सच्चाई को यों कह सकते हैं कि अंग्रेजी एक महत्वपूर्ण विश्व भाषा है और विश्व बाजार की भी एक महत्वपूर्ण भाषा है । लेकिन विश्व बाजार में संपर्क तो चीनी, जापानी, फ्रांसीसी, जर्मन, स्पानी के साथ ही हिंदी के माध्यम से भी होता है । बारत के फैलते हुए बाजार और दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के संगठन की बढ़ती हुई भूमिका की पृष्ठभूमि में हिंदी के महत्व और भूमिका में भी वृद्धि होती जा रही है ।
    वैज्ञानिक-तकनीकी क्रांति के इस दौर में यह उस्सेखनीय है कि वैज्ञानिक-तकनीकी कर्मियों की संख्या की दृष्टि से दुनिया में भारत का तीसरा स्थान है । ये तकनीकी कमी दुनिया के विभिन्न देशों में काम करते हैं और हिंदी के प्रसार की भूमिका अदा करते हैं । लेकिन इस प्रसंग में एक बात और उल्लेखनीय है । इलेक्टॉनिक संचार-माध्यम और कम्प्यूटर आदि के उपयोग में हिंदी ने धीरे-धीरे अपनी जगह बना ली है इससे एक तरफ इन माध्यमों से हिंदी का प्रसार हो रहा है, तो दूसरी तरफ हिंदी क्षेत्र में इसेक्ट्रोनिक यंत्रों का बाजार भी फैल रहा है । इससे हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय भूमिका मजबूत हो रही है । ये ही बातें हैं, जिनको ध्यान में रखकर वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने कुछ दिन पहले कहा कि भारत को समझना है, तो हिंदी सीखो । यह हिंदी के प्रति या भारत के प्रति बुश की उदारता नहीं है, बल्कि अपनी नवउपनिवेशवादी योजना को कारगर बनाने के लिे हिंदी का उनके द्वारा इस्तेमाल किया जाना है । लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि हिंदी हमारे चिंतन की, हमारे सपनों की, हमारे प्रतिरोध की भाषा बनकर हमारी सास्कृतिक और राष्ट्रीय स्वायत्तता की रक्षा की भाषा बनकर हमें ताकत देती है ।
    अंतिम बात यह है कि आज भूमंडलीयकरण यानी अमेरिकीकरण के इस दौर में एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका के राष्ट्र अपनी राष्ट्रीय स्वतंत्रता, संप्रभुता और विकास के साधनों की रक्षा के संघर्ष में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है । इस संघर्ष में भारत की भूमिका के साथ हिंदी भी अपनी ऐतिहासिक भूमिका अदा करेगी, ऐसी संभावना है । भारत सरकार में हावी नौकरशाही यद्यपि नौकरशाही यद्यपि भारत को और हिंदी को भी अपनी वाजिब भूमिका अदा करने से रोकती है, उसकी भूमिका को कुंठित करती है । इसके बावजूद जनता का और राष्ट्रीय जरूरतों के आग्रहों का दबाव नौकरशाही को नियंत्रित करता है और हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय भूमिका को उजागर करता है ।
    उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह बात स्पष्ट है कि देशी बोलियों एवं भाषाओं, विदेशी अरबी-फारसी तथा संस्कृत के मूल तत्सम शब्द हिंदी में रचनाओं के प्रभाव एवं प्रवाह में बाधक नहीं होते अपितु इनका विकास ही करते हैं, चूँकि ये सभी शब्द एक ही भाषा-परिवार से आये हैं । यही कारण है कि हिंदी में उपरोक्त भाषाओं तथा बोलियों के शब्दों का मिश्रण हमें अनुचित नहीं लगता । परन्तु अंग्रेजी के सन्दर्भ में यह बात लागू नहीं होती क्योंकि यह तो एक विदेशी द्विप की भाषा है जो संस्कृत-जनित भाषा नहीं है । हिंदी में इसके शब्दों की मिलावट हिंदी के स्तर को गिराने का ही कार्य करेगी । यह भी सत्य है कि अंग्रेजी, हिंदी रचनाओं में प्रवाह की स्थापना में सहयोग नहीं देती । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अंग्रेजी, हिंदी का मात्र क्षय ही कर रही है । जब हमारे विद्वानों ने इस बात का विरोध किया तो अंग्रेजी के कुछ राष्ट्रविरोधी समर्थको ने हिंदी अंग्रेजी के मिश्रण-हिंग्लिश को युवाओं के मध्य एक मजेदार भाषा के रूप में स्थापित करने का दुष्चक्र चलाना प्रारम्भ कर दिया, यद्यपि हमारे मत में हिंग्लिश में कुछ भी मजेदार नहीं है । आजकल इस हिंग्लिश के माध्यम से युवाओं के मन से परिनिष्ठित हिंदी को मिटाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाए जा रहे हैं । मनोरंजन के माध्यम-सिनेमा, टीवी एवं विशेषकर रेडियो आरजे हिंग्लिश को लगातार बढ़ावा देते हुए इसे युवा के बीच लोकप्रिय बनाने में जुटे हुए हैं । साथ ही साथ एसएमएस संस्कृति हिंदी की सहस्त्रों वर्ष पुरानी देवनागरी लिपि को समाप्त करने का माध्यम बन गयी है । जब हमें खाद्य पदार्थों से लेकर कपड़ों तक किसी भी वस्तु में मिलावट बर्दाश्त नहीं तो फिर मातृभाषा में मिलावट हम कैसे सह सकते हैं ? यद्यपि "भारत दुर्दशा" जैसे निबंध लिखकर इस देश को जगाने वाले महान साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने मातृभाषा का महत्व कुछ इस प्रकार से बताया है ।-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल ।
बिनु निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल ।।
अंग्रेजी पढिके जदपि, सब गुन होत प्रबीन ।
पै निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।।

प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त का कार्यालय, बेंगलूरू      

  

हिंदी को एक दिन : आखिर क्यों ?

हिंदी  को एक दिन : आखिर क्यों ?
(सुबोध कुमार सिंह)

हम सब हर वर्ष 14 सितंबर को देश में हिंदी दिवस मनाया जाता है। यह मात्र एक दिन नहीं बल्कि यह है अपनी मातृभाषा को सम्मान दिलाने का एक मात्र दिन है। उस भाषा को सम्मान दिलाने का जिसे लगभग तीन चौथाई हिन्दुस्तान समझता है, जिस भाषा ने देश को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाई। उस हिंदी भाषा के नाम यह दिन समर्पित है जिस हिंदी ने हमें एक-दूसरे से जुड़ने का साधन प्रदान किया । आज देश में हिंदी के हजारों न्यूज चैनल और अखबार आते हैं लेकिन जब बात प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान की होती है तो उनमें अव्वल दर्जे पर अंग्रेजी चैनलों को रखा जाता है। बच्चों को अंग्रेजी का विशेष ज्ञान दिलाने के लिए अंग्रेजी अखबारों को स्कूलों में बंटवाया जाता है लेकिन क्या आपने कभी हिंदी अखबारों को स्कूलों में बंटते हुए देखा है।

बात सिर्फ शैक्षिक संस्थानों तक सीमित नहीं है। जानकारों की नजर में हिंदी की बर्बादी में सबसे अहम रोल हमारी संसद का है। भारत आजाद हुआ तब हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की आवाजें उठी लेकिन इसे यह दर्जा नहीं दिया गया बल्कि इसे मात्र राजभाषा बना दिया गया। राजभाषा अधिनियिम की धारा 3 [3] के तहत यह कहा गया कि सभी सरकारी दस्तावेज और निर्णय अंग्रेजी में लिखे जाएंगे और साथ ही उन्हें हिंदी में अनुवादित कर दिया जाएगा। जबकि होना यह चाहिए था कि सभी सरकारी आदेश और कानून हिंदी में ही लिखे जाने चाहिए थे और जरूरत होती तो उन्हें अंग्रेजी में बदला जाता। लेकिन 26 जनवरी, 1950 जिस दिन से संविधान लागू हुआ हिंदी भी कहने मात्र तो लागू हो गई हकीकत में उस दिन से लेकर आज तक 63 साल बीत जाने पर भी हिंदी अपना बजूद खोजने में असमर्थ रही है। 

सरकार को यह समझने की जरूरत है हिंदी भाषा सबको आपस में जोड़ने वाली भाषा है तथा इसका प्रयोग करना हमारा संवैधानिक एवं नैतिक दायित्व भी है। अगर आज हमने हिंदी को उपेक्षित करना शुरू किया तो कहीं एक दिन ऐसा ना हो कि इसका वजूद ही खत्म हो जाए। समाज में इस बदलाव की जरूरत सर्वप्रथम स्कूलों और शैक्षिक संस्थानों से होनी चाहिए। साथ ही देश की संसद को भी मात्र हिंदी पखवाड़े में मातृभाषा का सम्मान नहीं बल्कि हर दिन इसे ही व्यवहारिक और कार्यालय की भाषा बनानी चाहिए ।
जब एक बच्चा जन्म लेता है तो वह मां के पेट से ही बोली सीखकर नहीं आता। उसे भाषा का पहला ज्ञान अपने माता-पिता द्वारा बोले गए प्यार भरे शब्दों से ही होता है। भारत में अधिकतर बच्चे सर्वप्रथम हिंदी में ही अपनी मां के प्यार भरे बोलों को सुनते हैं। हिंदी हिन्दुस्तान की भाषा है । यह भाषा है हमारे सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की तो इसे क्यां न आगे बढ़कर अपनाया जाए। अगर हम अभी भी न जागे तो एक दिन निश्चय ही विश्व की अनेक विलुप्त भाषाओं की श्रेणी में अपने आप को भी पाएंगें।
हिंदी हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरोनी की एक मजबूत माला है। कभी गांधीजी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था तो इसी हिंदी की खड़ी बोली  को अमीर खुसरो ने अपनी भावनाओं को प्रस्तुत करने का माध्यम भी बनाया। लेकिन यह किसी दुर्भाग्य से कम नहीं कि जिस हिंदी को हजारों लेखकों ने अपनी कर्मभूमि बनाया, जिसे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने भी देश की शान बताया उसे देश के संविधान में राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि सिर्फ राजभाषा की ही उपाधि दी गई। कुछ तथाकथित राष्ट्रवादियों की वजह से हिंदी को आज उसका वह सम्मान नहीं मिल सका जिसकी उसे जरूरत थी।

जिस हिंदी को संविधान में सिर्फ राजभाषा का दर्जा प्राप्त है उसे कभी गांधी जी ने खुद राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही थी सन 1918 में हिंदी साहित्य सम्मलेन की अध्यक्षता करते हुए गांधी जी ने कहा था कि “ हिंदी ही देश की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए।” लेकिन आजादी के बाद न गांधी जी रहे न उनका सपना। सत्ता में बैठे और भाषा-जाति के नाम पर राजनीति करने वालों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं बनने दिया।

भारतीय पुनर्जागरण के समय भी श्रीराजा राममोहन राय, केशवचंद्र सेन और महर्षि दयानंद जैसे महान नेताओं ने हिंदी की खड़ी बोली का महत्व समझते हुए इसका प्रसार किया और अपने अधिकतर कार्यों को इसी भाषा में पूरा किया। हिंदी के लिए पिछली सदी कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है लेकिन आज हिंदी को उसका हक दिलाने के लिए हमे फिर एक पुनर्जागरण की आवश्यकता महसूस होती है।
जहाँ हिन्दुस्तान नाम भी हिंदी के आधार पर पड़ा है फिर भी हम विदेशी भाषा के प्रभुत्व का नतीजा भारत वर्ष कई वर्षों से भोग रहे हैं। औपनिवेशिक शासन में यह भाषा हुकूमत करने वालों ने हथियार के तौर पर इस्तेमाल की जाती है। इससे भाषा के साथ ग्रंथि जुड़ गयी। श्यामल अंग्रेजों को भी भाषा को औजार बनाकर जनता जनार्दन पर अपने को हावी रखने का चस्का लग गया है। इसी कारण उन्होंने हर हथकंडा इस्तेमाल किया लेकिन आजादी के बाद भी शासन व्यवस्था में अंग्रेजी के दबदबे को कमजोर नहीं होने दिया। दूसरी ओर विदेशी भाषा ने सोच की भारतीय समाज की मौलिकता को नष्ट कर दिया। अंग्रेजी ने अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र गिरोहों के चश्मे से स्थितियों को देखने का आदी बनाकर हमारी स्थिति यह कर दी है कि हम अपने ही खिलाफ षड्यंत्र के सहयोगी हो रहे हैं।

हिंदी दिवस पर आज हिंदी का जमकर महिमा बखान किया जाता है। अंग्रेजी के मुकाबले उसके शब्द सामर्थ्य कम होने के आरोप थोपे जाते हैं। अन्य कई चीजों की सफाई दी गयी। यह एक परंपरागत अनुष्ठान है जो  14 सितंबर को संपन्न होने के साथ ही बेमानी हो जाता है लेकिन अंग्रेजी के वर्चस्व के विरुद्ध इससे ज्यादा सार्थक कारण हैं। अंग्रेजी से विरासत में आईएएस सेवा को जो शासक मनोवृत्ति मिली है उसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि लोकतंत्र अपाहिज होकर इस संवर्ग के अधिकारियों की वजह से घिसट रहा है। वे समाज के प्रति अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं समझतेउनके अंदर कोई रचनात्मकता इस दुर्गुण ने नहीं रहने दी हैदीनहीन जनता और बुद्धिजीवीशिक्षककविसाहित्यकार व अन्य लोग जो समाज के लिये परिसंपत्ति का मूल्य रखते हैं उनके लिये उपेक्षणीय हैं। आईएएस अधिकारी अपनी सत्ता के समीकरणों के हिसाब से व्यवस्था को चुनौती देने में सक्षम व अन्य अराजकतत्वोंदलालों को भाव देते हैं। उनके शक्तिपात से प्रभावशाली होकर अवांछनीय तत्व लोकतंत्र में सत्ता की सीढ़ी आसानी से चढऩे में सफल हो रहे हैं। अगर यह सेवा भंग कर दी जाये और प्रशासनिक सेवा के माध्यम के बतौर सिर्फ राष्ट्रभाषा या मातृभाषा की सीमा तय कर दी जाये तो नतीजा देने वाली नौकरशाही अस्तित्व में आ जायेगी जो खुद की प्रतिष्ठा के लिये भी सचेत होगी और देश के लिये भी।
                                                         (सुबोध कुमार सिंह)
                                                        कनिष्ठ हिंदी अनुवादक,
                       प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त का कार्यालय, बेंगलूरु



अनुवाद कार्य में रूपरचना और वाक्यरचना का व्येतिरेकी विश्लेशण, अध्याय-3

( अध्याय – 3 )
रुपरचना में व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्व
क - रूपरचनात्मक व्येतिरेक – रूप या पद दोनों समानार्थी हैं, वस्तुत मूल या प्रतिपादित शब्द धातुओं में व्याकरणिक प्रत्ययों के संयोग से अनेक शब्द बनाये जाते हैं। जो वाक्य में प्रयुक्त होने पर पद (रूप) कहलाते हैं। उच्चारण की दृष्टि से भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनी है तथा अर्थ की सार्थकता की दृष्टि से शब्द। यह सार्थक शब्द जब किसी वाक्य में प्रयुक्त होता है तो रूप बन जाता है। सार्थक ध्वनियों के समूह को रूप या पद कहते हैं। किसी भाषा के प्रयोग की सार्थकता उसके द्वारा अभिव्यक्त होने वाले भाव एवं विचारों की पूर्ण स्पष्टता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक वाक्य में प्रयोग किए गए पद या रूप सुव्यवस्थित हों, अर्थात संबंध तत्व और अर्थ तत्व में पूर्ण रूप से समानता हो। भाषाओं में रुप परिवर्तन संज्ञा, सर्ननाम, विशेषण तथा क्रिया पदों में लिंग, वचन, कारक, पुरुष, काल, अर्थ आदि के अनुसार होता है।
    प्रत्येक भाषा की संरचना दूसरी भाषा की संरचना से भिन्न होते हैं। भाषा संरचना को अध्ययन की सुविधा के लिए ध्वनि, व्याकरण एवं अर्थ इन तीन खंडों में विभक्त किया जाता है। व्याकरण को रूप रचना और शब्दों की संरचना इस दो वर्गों में विभाजित करते हैं। रूप रचना के अंतर्गत किसी व्याकरण के रूप अर्थात शब्दों का अध्ययन किया जाता है। शब्द के स्वरूप, प्रकार, नवीन शब्दों की रचना प्रक्रिया मूल शब्दों की रचना प्रक्रिया मूल शब्द में जुड़ने वाले प्रत्यय, सामासिक शब्द आदि का वर्णन रूप रचना का अंग है। ध्यान दें कि प्रत्येक भाषा इन रूप रचनात्मक लक्षणों में भिन्न-भिन्न होती हैं। रूप रचनात्मक व्यतिरेक के अंतर्गत मुख्यत: तीन बिंदुओं पर विश्लेषण किया जाता है। तात्पर्य यह है कि किंही दो भाषाओं के रूपरचना के बीच स्थूल रूप से तीन प्रकार के व्यतिरेक देखने को मिलते हैं।
1.    शब्द निर्माण प्रक्रिया की जटिलता- विश्व की सभी भाषाएं योगात्मक और आयोगात्मक दो वर्गों में बाँटी जाती हैं। जहाँ आयोगात्मक भाषा अपनी सत्ता में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं करती और जिसमें प्रत्येक विशिष्ट व्याकरणिक और अर्थगत भाव की अभिव्यक्ति नवीन शब्दों से होती है, वहाँ आयोगात्मक भाषाएं मूल धातुओं से नवीन रूपों की रचना करतें हैं। उच्च विभक्ति प्रधान भाषाएं जैसे – संस्कृत, ग्रीक, लैटिन आदि भाषाएं आयोगात्मक परिवार की भाषाएं ज्ञात होती हैं। चीनी, लाडू आदि में अनुवाद करने पर प्रयुक्त शब्दों की संख्या में वृद्धि अवश्य होती है। क्योंकि जहाँ संस्कृत और ग्रीक में क्रिया शब्द कारक, काल, पक्ष, वचन, वृत्ति, पुरुष आदि का ज्ञान कराते हैं, वहीं चीनी और लाडू जैसी आयोगात्मक भाषाएं इन सब की अभिव्यक्ति अलग-अलग शब्दों से करती है। यह आवश्यक है कि शब्दों में वृद्धि तो होती है पर साथ ही साथ संख्या के शब्दों में भी वृद्धि अवश्य होती है। फिर भी सूचना वही रहती है, यथा दूसरी तरफ यदि अनुवादक स्किमो या इलीकानों भाषा की क्रिया को ग्रीक में अनुवाद करे तो वह देखता है कि इन भाषाओं की क्रियाएं संस्कृत और ग्रीक की क्रियाओं से कहीं अधिक भाषाई भाव व्यक्त करती हैं। इस स्थिति में अनुवादक को क्रिया के अलवा अन्य शब्दों का सहारा लेना पड़ता है।
रूप रचना के अंतर्गत रूप या शब्द और वस्तु या पदार्थ इन दोनों के     अतिरिक्त भाव की स्थापना की कल्पना भी रूप या पद में की गई है। जो      वस्तु और शब्द की मध्यवर्ती होती है,शब्द का अर्थ भाव पर आधारित होता है। रूप, शब्द और वस्तु इन तीनों घटकों को कई नामों से अभिहित किया जाता है, जिनमें कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं –:
आग्डेन और रिचर्डस ने बड़ी कुशलता के साथ अर्थीय त्रिकोण (semiotic tringle) के द्वारा इसका निरूपण किया है। अर्थ विज्ञान के क्षेत्र में इस त्रिकोण ने बड़ी प्रसिद्धि और स्वीकृति प्राप्त कर चुका है।
                   भाव, आख्येय, वाच्य

   शब्द, रूप, संकेतक                     पदार्थ, वस्तु, संकेतित



उपर्युक्त त्रिकोण से एक बात स्पष्ट है कि किसी भी पद के कुछ अभिलक्षण होते हैं र कुछ विशेषताएं होती हैं जिसमें से कुछ तो अन्य पदों में भी पाई जाती हैं और कुछ उसकी अपनी होती हैं जो मात्र उसमें ही पाई जाती हैं। अन्य पदों या रूपों में पाई जानेवाली विशेषताओं के आधार पर उनको कोटि (वर्ग) में रखा जाता है।
2-     पदवर्ग संबंधी व्यतिरेक- बहु भाषी राष्ट्र या विश्व में व्यवहरित विविध भाषाओं के पदवर्ग या शब्दवर्ग में में भिन्नता मिलती है। वहीं कुछ भाषाओं में पाँच या आठ वर्ग भी देखे जाते हैं। पदवर्गों के बीच मात्र संख्या ही नहीं अपितु पदवर्ग द्वारा व्यक्त अर्थ में भी परिवर्तन मिलता है। जैसे – अंग्रेजी के क्रिया विशेषण quickly, slowly, recently इन शब्दों को यदि डिंका (Dinka) भाषा में अनुदित किया जाय तो वहाँ ये सहायक क्रियाओं द्वारा अनुदित होंगे। किन्तु ध्यान रहे कि यह विशेषता सभी अंग्रेजी विशेषणों के साथ लागू नहीं होती। इसी प्रकार कभी-कभी दो भाषाओं में समान पदवर्ग मिलने पर भी पदवर्ग के कार्य में अंतर दिखाई पड़ता है। क्योंकि ध्यान रहे कि प्रत्येक भाषा के शब्द जहाँ एक तरफ कुछ व्याकरणिक अर्थ को व्यक्त करते हैं तो दूसरी विशिष्ट अर्थ भी व्यक्त करते हैं । अत: कई बार ऐसा होता है कि स्टैपीन (Stapean) भाषा का शब्द जिस अर्थ या नियम की अभिव्यक्ति करता है, लक्ष्य भाषा का शब्द उन सभी पर खरा न उतर सके । जैसे :
He was cycling.  वह साइकिल चला रहा था।
He was playing with pipe. वह बांसुरी बजा रहा था।
3-      व्याकरणिक कोटियों के आधार पर व्यतिरेक – प्रत्येक भाषा के शब्द या पंक्ति भाषा के लिंग, वचन, कारक, काल, पुरुष आदि की अभिव्यक्ति करते करते हैं। जैसे कुछ भाषाओं में वाच्य के दो वर्ग मिलते हैं, वहीं कई भाषाओं में वाच्य कर्म कार्य नहीं करता है। जैसे Passive voice के सभी वाक्यों का कृत वाच्य बनाते समय वाच्य में परिवर्तन करना पड़ता है। इसी प्रकार अल्गोइक्यून (Algoiquine) भाषा में लिंग द्वारा वस्तु या व्यक्ति की आकृति का ज्ञान होता है। साथ ही साथ प्राप्त भाषा में कोटियों का प्रयोग भी भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता है, अर्थात हो सकता है कि दो भाषाओं में समान कोटियाँ प्राप्त हों किंतु आवश्यक नहीं है कि दोंनो का प्रयोग परास/समान हो। जैसे हिंदी में हम का प्रयोग एकवचन एवं बहुवचन दोंनो के लिए होता है। इसी प्रकार अंग्रेजी में who और which दो सर्वनाम मिलते हैं,who का प्रयोग He और She के लिए तथा which का प्रयोग It के लिए होता है, और कुछ स्थानों पर दोंनो का प्रयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति में अनुवादक को सार्थकता से काम लेना पड़ता है। इसके अतिरिक्त व्याकरणिक कोटि का चयन किस पदवर्ग से हुआ है में भी भेद देखने को मिलता है । अर्थात किसी भाषा के कौन-कौन से पदवर्ग (संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि) किस-किस व्याकरणिक कोटि (लिंग, वचन, कारक, पुरूष, काल आदि) का चयन करते हैं। इस संबंध में भाषाओं में भिन्नता मिलती है। जैसे हिंदी और अंग्रेजी के लिंग चयन की बात करें तो हिंदी में संज्ञा, क्रिया, विशेषण (कतिपय विशेषण) लिंग का चयन करते हैं। जैसे –
मेरी पीली साड़ी धुली है। शीला की लाल फ्राक जली है आदि। वहीं अंग्रेजी में लिंग का चयन सिर्फ संज्ञा या सर्वनाम के द्वारा किया जाता है। जैसे- He goes to school. She goes to school. They go to school etc.
अत: कह सकते हैं कि हिंदी अंग्रेजी के मध्य रूप रचना के स्तर पर व्यतिरेक पाया जाता है।
निष्कर्ष  
इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण का अनुवाद में उपयोग किया जाता है और व्यतिरेकी विश्लेषण से जो निष्पतियाँ प्राप्त होती हैं, उससे अनुवाद प्रकिया में लाभ उठाया जाता है। व्यतिरेकी विश्लेषण में अनुवाद का उपयोग उस सीमा तक होता है जहाँ वह दोंनो भाषाओं की सामग्री प्रस्तुत करता है। चूँकि अनुवाद की प्रक्रिया भाषा अधिगम की प्रक्रिया से जुड़ी हुई है, इसलिए इसे बोधन तथा संप्रेषण की प्रक्रिया भी मान लिया गया है। इससे भाषा शिक्षण की सामग्री के निर्माण में व्यतिरेकी विश्लेषण से सहायता मिलती है। व्यतिरेकी विश्लेषण अनुवाद की उपयोगिता के बारे में सैद्धांतिक आधार प्रस्तुत करता है। किर्कवुड (1966) ने अनुवाद को व्यतिरेकी विश्लेषण के लिए वाक्यपरक एवं अर्थपरक स्तर पर आधार का कार्य करने के संबंध में कहा है कि अनुवाद के माध्यम से व्यतिरेकी विश्लेषण- यहाँ अनुवाद अपने आप में साधन के रूप में है न कि साध्य के रूप में और वह भी अल्प किंतु गहन रूप में- अध्येता का ध्यान दो भाषाओं के वाक्यपरक और अर्थपरक भेदों तथा असमानताओं की ओर दिलाता है, इन भेदों तथा असमानताओं को पकड़ता है और कुछ सीमा तक उनका समाधान भी करता है।’’
अनुवाद व्यतिरेकी तकनीक के रूप में स्रोत भाषा और लक्ष्यभाषा के बीच व्याप्त असमानताओं के प्रति सजगता पैदा करता है। इससे समतुल्ता के संबंध को जानने के लिए स्रोत भाषा और उसके अनुदित पाठ का विश्लेषण करने की क्षमता पैदा करता है। वास्तव में स्रोत भाषा के निकटस्थ घटकों का पहले विश्लेषण होता है,उसके बाद क्रमवार अनुवाद प्रक्रिया प्रारम्भ होती है जिससे विभिन्न संरचनात्मक और असमानताओं की तुलना करने में सुविधा होती है। यह सही की व्यतिरेकी विश्लेषण का पहला प्रारूप भाषिक अर्थ पर बल देता है किंतु उसे अनुवाद का अंतिम उद्देश्य नहीं माना जाता।  आज व्यतिरेकी विश्लेषण दो भाषाओं की तुलना के साथ-साथ संप्रेषणपरक अर्थ को भी अपने अध्ययन-क्षेत्र में लेता है। इस विश्लेषणपरक अध्ययन के अंतर्गत अनुवाद का पहला कार्य संदेश का मंतव्य प्रस्तुत करना है जिसे न्यूमार्क (1981) ने संप्रेषणपरक अर्थ कहा था। इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण दो भाषाओं के मध्य प्राप्त व्यतिरेक को हल कर उसे अनुवाद और भाषा शिक्षण में लाभप्रद बनाना है।

 संदर्भ-ग्रंथ सूची

क्रम सं.
पुस्तक का नाम
लेखक
1
व्यतिरेकी भाषाविज्ञान       
डॉ. भोलानाथ तिवारी एवं किरण बाला
2
व्यतिरेकी भाषाविज्ञान
डॉ. विजय राघव रेड्डी
3
अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान        
डॉ. कविता रस्तोगी
4
समसामायिक भाषाविज्ञान
डॉ. कविता रस्तोगी
5
अनुवाद सिद्धांत एवं प्रयोग
जी.गोपीनाथन
6
अनुवाद अंक 100-101
डॉ. कृष्ण कुमार गोस्वामी
7
हिंदी व्याकरण
कामताप्रसाद गुरु
8
English Grammar & Composition
Wren & Martin
9
The Practical English Grammar
K.P.Thakur

अनुवाद कार्य में रूपरचना और वाक्यरचना का व्येतिरेकी विश्लेशण, अध्याय 1 व 2

केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो
राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय
केंद्रीय सदन, कोरमंगला, बेंगलूरु –560034

त्रैमासिक अनुवाद प्रशिक्षण पाठ्यक्रम

( अक्टूबर – दिसंबर 2011 )

    अनुवाद कार्य में रूपरचना और     
वाक्यरचना का व्येतिरेकी विश्लेशण

           परियोजना कार्य
मार्गदर्शन:                            प्रस्तुतकर्ता
श्री एम.एम.भांडेकर                             सुबोध कुमार सिंह 
सहायक निदेशक,                               हिंदी अनुवादक
केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो, बेंगलूर                    आयकर विभाग, मैसूर
( अनुक्रमांक – 1836 )
विषयसूची
(अध्याय – 1)
व्यतिरेकी भाषाविज्ञान का उदभव और विकास
 क- व्येतिरेकी भाषाविज्ञान का अर्थ
ख- व्येतिरेकी भाषाविज्ञान का विकास
(अध्याय – 2)
वाक्यरचना में व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्व
क-       वाक्यरचना
ख-      हिंदी संज्ञा पदबंध
ग-           हिंदी क्रिया पदबंध
घ-           अंग्रेजी क्रिया पदबंध
ङ-            हिंदी – अंग्रेजी क्रियाओं में व्यतिरेक
(अध्याय – 3)
रुपरचना में व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्व
क-       रुपरचनात्मक व्यतिरेक
ख-      शब्द निर्माण प्रक्रिया की जटिलता
ग-        पदवर्ग संबंधी व्येतिरेक
घ-        व्याकरणिक कोटियों के स्तर पर व्येतिरेक
   निष्कर्ष
   संदर्भ-ग्रंथ

(अध्याय – 1)
व्यतिरेकी भाषाविज्ञान का उदभव और विकास
अर्थ एंव परिभाषा
      भाषा एक सामाजिक संपत्ति है । इसलिए आधुनिक भाषाविज्ञान  में विश्लेषण की विधियों के साथ–साथ शिक्षण-क्षेत्र में भी भाषाविज्ञान के अनुप्रयोग के जो प्रयास किए गये हैं, उनमें व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्वपूर्ण स्थान है । व्यतिरेकी शब्द संस्कृत की रिच् धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है अलग करनारिच के पूर्व वि ( विशेष ) तथा अति उपसर्ग और अंत में भाववाचक प्रत्यय धञ् जोड़ने से ( वि+अति+रिच्+धञ् ) व्यतिरेक शब्द बनता है, जिसका अर्थ है विरोध या असमानता । व्यतिरेक में ही प्रत्यय लगाने से व्यतिरेकी शब्द बना जिसका अर्थ है असमानता दिखाने वाला । इसी अर्थ में व्यतिरेकीशब्द को अंग्रेजी के  कंट्रास्टिव’ ( Contrastive ) का पर्याय बन गया । अब कंट्रास्टिव लिंग्विस्टिक्स’ ( Contrastive Linguistics ) के लिए व्यतिरेकी भाषाविज्ञान का प्रयोग किया जाने लगा है ।
The most efficient materials are those that are based upon a scientific description ofthe language to be learned, carefully compared with a parallel description of the native language of the learner.      (Fries 1945: 9)

Language comparison is of great interest in a theoretical as well as an appliedperspective. It reveals what is general and what is language specific and is thereforeimportant both for the understanding of language in general and for the study of theindividual languages compared.    (Johansson and Hofland 1994: 25)

The term 'contrastive linguistics', or 'contrastive analysis',3 is especially associatedwith applied contrastive studies advocated as a means of predicting and/or explainingdifficulties of second language learners with a particular mother tongue in learning aparticular target language.     
 In the Preface to his well-known book, Lado (1957)

Most of the differences between English and Other Language found in the corpus material
may be results of the differing degrees of grammaticalisation of the two sets ofmodals, the
Other Language modals being less grammaticalised than the English ones.
   (Løken 1997: 55f.)
“ किन्हीं दो भाषाओं के विविध स्तरों पर पाई जाने वाली समता-विषमता का गहन अध्ययन कर उत्पन्न विषमता को दूर करने का प्रयत्न व्येतिरेकी भाषाविज्ञान कहलाता है । ’’ डॅा. कविता रस्तोगी, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
“ दो भाषाओं के मध्य उत्पन्न विषमता को दूर कर अनुवाद और शिक्षणकार्य के योग्य बनाने का अध्ययन व्येतिरेकी भाषाविज्ञान है ’’ प्रो. उषा सिन्हा , लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ 
“व्येतिरेकी भाषाविज्ञान वह विज्ञान है जो भाषा को अनुवाद-कार्य और शिक्षण-कार्य  के लिए सुलभ बनाता है । ’’  सुबोध कुमार सिंह, हिंदी अनुवादक
     व्यतिरेकी भाषाविज्ञान के कई अन्य नाम भी मिलते हैं जैसे- भेददर्शी व्याकरण(Differential Grammar), व्यतिरेकी व्याकरण (Contrastive Grammar),  तुलनात्मक भाषाविज्ञान (Comprative Linguistics) या तुलनात्मक व्याकरण (Comprative Grammar)  आदि का प्रयोग भी व्यतिरेकी भाषाविज्ञान के अर्थ में करते है । जिसमें दो भाषाओं की तुलना करके समानताएँ औऱ विषमताओं को अलग किया जाता है, यूं तो तुलनात्मक भाषाविज्ञान  नाम का प्रयोग प्राय: ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के संदर्भ में तुलना द्वारा समानताओं का पता लगाकर भाषाओं में संबंध स्थापित करना एवं मूलभाषा के निर्माण आदि के लिए किया जाता है ।
यद्यपि व्यतिरेकी भाषाविज्ञान भाषाविज्ञान के उस प्रकार को कहते हैं जिसमें दो भाषाओं या भाषारूपों की विभिन्न स्तरों पर तुलना करके उनके आपसी विरोधों या व्यतिरेकों का पता लगाते हैं । यहाँ पर यह ध्यान रखना जरुरी है कि दो भाषाओं की तुलना करने पर दो प्रकार की बातें सामने आती हैं –
1-     दोनों भाषाएं किस-किस स्तर पर समान हैं ।
2-     दोनों भाषाएं किस-किस स्तर पर असमान हैं ।
यह एक प्रकार का तुलनात्मक भाषाविज्ञान ही है,अंतर केवल यह है कि तथाकथित तुलनात्मक भाषाविज्ञान में तुलना के बाद समानताओं पर विशेष बल होता है तो व्यतिरेकी भाषाविज्ञान में विरोधी या असमान बातों की खोज पर । जैसा पिछे कहा गया है कि कुछ लोग व्यतिरेकी भाषाविज्ञान को तुलनात्मक भाषाविज्ञान नाम भी देते रहे हैं, किन्तु सामान्यत: दोनों में यह अंतर किया  जाता है कि तुलनात्मक भाषाविज्ञान का उद्देश्य है विविध भाषाओं समानता खोज कर उन्हें एक परिवार की सिद्ध करना जबकि व्यतिरेकी भाषाविज्ञान का उद्देश दो भाषाओं के व्यतिरेकों और विरोधों का भाषा-शिक्षण और अनुवाद आदि के लाभ हेतु पता लगाना है ।
विकास:-
भाषाविज्ञान की पाँच प्रमुख शाखाओं में से व्येतिरेकी भाषाविज्ञान भी एक प्रमुख शाखा है ।व्यतिरेकी भाषाविज्ञान अपने आधुनिक रूप में अधिक पुराना नहीं है, किंतु किसी न किसी रूप में इसकी नींव काफी पुरानी मानी जा सकती है । 18वीं-19वीं सदी के ऐतिहासिक और तुलनात्मक भाषाविज्ञान में प्रत्यक्षत: या परोक्षत: व्यतिरेकी भाषाविज्ञान भी पनपता नजर आता है । व्यतिरेकी भाषाविज्ञान का अप्रत्यक्ष दृष्टि से संकेत भाषा-शिक्षण के प्रसंग में बहुत पहले से मिलता है । पाठशालाओं में जब संस्कृत का विद्यार्थी लिखते या बोलते समय किसी तत्सम शब्द का ऐसे अर्थ में प्रयोग कर देता था जो संस्कृत में नहीं होता था किंतु हिंदी में होता है, तो गुरू का यह कहना कि यह हिंदी का प्रभाव है तत्वत: व्यतिरेकी दृष्टि का ही प्रभाव हुआ करता था ।
 उदाहरण के लिए हिन्दी भाषी अपनी संस्कृति में हिंदी अर्थ में ‘सदन’ ‘अनुवाद’ या ‘आकाशवाणी’ का  प्रयोग करे तो इस अशुद्धि  का संकेत व्यतिरेकी दृष्टि पर ही आधारित होता है । लिंग या ‘ने’ की गलती करता है तो उसे भोजपुरी प्रभाव कहने में भी यही बात होती है । इस प्रकार अन्य भाषा-शिक्षण तथा मातृभाषा शिक्षण दोनो में बहुत पहले से जाने-अनजाने में व्यतिरेकी दृष्टि के आधार पर अशुद्धियों की खोज की जाती रही है।
       साहित्यकारों की भाषा पर विचार करते समय भी लोग बहुत पहले से व्यतिरेकी दृष्टि रखते रहे हैं । उदाहरणार्थ अंग्रेजी, फ्रांसीसी और जर्मन कवियों और लेखकों की तरह हिन्दी मे मैथिलीशरण गुप्त पर मैथिली प्रभाव,जयशंकर प्रसाद पर तत्व और लिंग का दोष और प्रेमचंद पूरब के अमानक प्रयोग व्यतिरेकी दृष्टि के ही प्रयोग हैं।
        आधुनिक समय में उच्चारण, वर्तनी, लिपिचिन्ह, व्याकरण, शब्दरचना, रूपरचना, वाक्यरचना, ध्वनि, वर्ण, अर्थ एवम शब्द प्रयोग आदि के स्तर पर  व्यवस्थित खोज की जाती है । अब संरचनात्मक, बंधिंम वैज्ञानिक ,स्तरपरक, रूपांतरक , प्रजनक, कारकीय व्याकरण , प्रजनक अर्थविज्ञान संबंधपरक आदि विश्लेषण में  किसी न किसी एक की सहायता ली जाती है । अब व्यतिरेकी भाषाविज्ञान का प्रयोग मुख्यत:  भाषा-शिक्षण के लिये शैक्षणिक बिन्दु निकालने के लिये किया जाता है ।
      व्यतिरेकी भाषाविज्ञान को वैज्ञानिक रूप में प्रतिष्ठित और विकसित करने का श्रेय द्वतीय भाषा-शिक्षण की समस्या से जूझने वालों को है । सन 1940 के आस-पास अमेरिका के ‘मिशीगन विश्वविद्यालय’ के ‘इंग्लिश लैंग्वेज इंस्टीट्यूट में पाठ्य सामग्री बनाने वालों का ध्यान व्यतिरेकी भाषाविज्ञान की ओर गया । कुछ सामग्री के प्रकाशन के बाद 1945 में फ्राइज ने एक पुस्तक ‘टीचिंग एण्ड लर्निंग इंग्लिश ऐज ए फारेन लैंग्वेज’ ( Teaching and Learning English as a Foreign Language)  प्रकाशित की जिसका उद्देश्य भाषावैज्ञानिक दृष्टि को स्पष्ट करना था जिसके अनुसार सामग्री बनी थी साथ ही सामग्री के आधार पर पढाने की पद्धति का संकेत करना था । उक्त पुस्तक में एक जगह फ्राइज ने लिखा है – “ ऐसा वयस्क जो अपनी भाषा जानता है और कोई दूसरी भाषा थोड़े समय में ही सीख सकता है यदि उसमें सीखने की पूरी लगन हो तथा अच्छी सामग्री के आधार पर कोई अच्छा अध्यापक उसे पढ़ाए । सबसे अच्छी सामग्री वह होती है जो भाषा सीखने वाले की मातृभाषा और सिखाई जाने वाली भाषा इन दोनो के वैज्ञानिक वर्णनों की तुलना पर आधारित हो ।” इस तरह भाषा-शिक्षण के प्रसंग में व्यतिरेकी अध्ययन के मह्त्व को संकेतित करने का प्रथम श्रेय फ्राइज को है ।  
आगे चलकर सन 1953 में वारनाइख ने अपनी पुस्तक लैंग्वेजेज इन कांटैक्ट’ (Languages in contact) में तथा सन 1953 में ही हीगेन ने अपनी पुस्तक द नार्वेजियन लैंग्वेज इन अमेरिका’ (The Norwegian Language in America) तथा सन 1954 में प्राब्लम्स आफ बाइलिंगुअल डिस्क्रिप्शन’ (Problems of Bilingual Description) में व्येतिरेकी अध्ययन की ओर संकेत किया । इसके तीन वर्ष बाद सन 1957 में फ्राइज ने पुन: लाडो की पुस्तक लिंगुइस्टिक एक्रास कल्चर्स’ (Linguistics Across Cultures) की भूमिका में भाषा सिखने के लिए व्येतिरेकी विश्लेषण पर बल दिया । इसमें व्येतिरेकी भाषाविज्ञान को सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक दोनों ही दृष्टियों से ठोस स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया ।
      यद्यपि चार वर्ष बाद सन 1961 में प्रकाशित दूसरी पुस्तक लैंग्वेज टेस्टिंग: द कांस्ट्रक्शन एंड यूज आफ फारेंन लैंग्वेज टेस्ट’ (Language Testing: The Contraction and use of Foreign Language Test) में भी लाडो ने व्येतिरेकी भाषाविज्ञान की सहायता ली है । इसके दो वर्ष पूर्व 1959 में वांशिगटन में अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान के तत्वाधान में फ़र्गुसन (A.C.Farguson) के संपादन में व्येतिरेकी संरचना माला का श्री गणेश हुआ ।अंग्रेजी-इटैलियन व्याकरण संरचना पर पुस्तकें 1962 से 1966 तक निकल चुकी थी । वांशिगटन के जार्जटाउन विश्वविद्यालय में 1968 को हुई गोष्ठी का एक विषय व्यतिरेकी भाषाविज्ञान और भाषाशिक्षण में इसकी उपयोगिता भी था, इसके बाद भी इस पर समय-समय पर गोष्ठियाँ होती रही हैं । सन 1969 में कैम्ब्रिज में अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस के एक सेक्शन में भी व्यतिरेकी भाषाविज्ञान पर काफी लेख पढ़े गये थे जिनमें से मुख्य तेरह को पेपर्स इन अपलाइड लिंगुइस्टिक’ ( Papers in Applied Linguistics) नाम से निकेल द्वारा संपादित होकर 1971 में प्रकाशित हुए थे । इसप्रकार व्यतिरेकी भाषाविज्ञान भाषाशिक्षण और अनुवाद कार्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है ।



(अध्याय- 2)
वाक्यरचना में व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्व
वाक्यरचना –
वाक्‍यरचना के अन्‍तर्गत कि‍सी भाषा के वाक्‍य के स्‍वरूप उसके अनि‍वार्य तत्‍वों, वि‍वि‍ध प्रकारों और वाक्‍यों के प्रमुख घटकों की चर्चा की जाती है । इस प्रकार वाक्‍य रचना भाषावि‍ज्ञान की वह शाखा है जो वाक्‍य से संबंधि‍त समस्‍त वि‍शेषताओं का वर्णन करती । प्रत्‍येक भाषा की संरचना जहाँ दूसरी भाषा ध्वन्यात्मक और शब्द रचना के स्तर पर भिन्न होती है वहीं हर भाषा के वाक्य निर्माण संबंधी नियम भी दूसरी भाषा से भिन्नता रखते हैं। इस प्रकार दो भाषाओं में वाक्य के अंदर शब्दों क्या क्रम होगा, भाषा विशेष में कितने प्रकार के वाक्य मिलते हैं, वाक्य के अनिवार्य घटक संज्ञा पदबंध, क्रिया पदबंध में क्या भिन्नताएँ है आदि का वर्णन वाक्य रचना के स्तर पर व्यतिरेकी विश्लेषण के अंतर्गत किया जाता है।
                     वाक्यरचना
                       शब्द
हिंदी                                            अंग्रेजी
शब्द क्रम                                          शब्द क्रम
कर्ता+ कर्म+ क्रिया                              कर्ता+ क्रिया+ कर्म    
    एक अन्य भाषा का शब्द क्रम इस प्रकार है, यह भाषा खासी भाषा जो नॉर्थईस्ट में पाई जाती है का शब्दक्रम क्रिया+कर्म+कर्ता है। इस प्रकार वाक्य संरचना में शब्दों का क्रम तीन प्रकार से रखा जा सकता है। साथ ही किसी भाषा में वाक्यों की रचना भी मुख्यत: तीन प्रकार से होती है-सरल, जटिल और मिश्रित वाक्य पाए जाते है। वाक्य संरचना में संज्ञा पदबंध और क्रिया पदबंध किसी भी वाक्य के अनिवार्य तत्व है।
बड़ा लड़का   दौड़ रहा है
(संज्ञा पदबंध)    (क्रिया पदबंध)
हिंदी संज्ञा पदबंध –
हिंदी का वाक्य मुख्य रूप से दो घटकों से बनता है, संज्ञा पदबंध और क्रिया पदबंध, हिंदी के सरल वाक्य का क्रम कर्ता+ कर्म+ क्रिया रहता है। हिंदी के संज्ञा पदबंध का मुख्य घटक संज्ञा होती है जिसके साथ एक या अधिक विशेषण या विशेषक आते हैं । जैसे लड़की, साँवली लड़की, मेरी छोटी बहन की साँवली लड़की, अत ध्यान से देखने पर लगता है कि इसका मुख्य घटक लड़की है और शेष घटक ऐच्छिक हैं जो संज्ञा पद का विस्तार करते हैं। इस प्रकार हिंदी के संज्ञा पदबंध को और अधिक विस्तृत किया जा सकता है। विशेषण एक मिश्रित रचना है जिसमें विशेषण और क्रिया विशेषण आपस में जुड़े रहते हैं। इसी प्रकार संज्ञा और उपवाक्य भी एक के बाद एक जुड़ सकते हैं। हिंदी में सभी विशेषण और विशेषक का स्थान मुख्य घटक (संज्ञा) से पहले आता है।इस प्रकार हिंदी संज्ञा पदवर्ग के मुख्य चार घटक हैं-
1.     निर्धारक-
यह वह भाग है जो वाक्य में सबसे पहले आता है। हिंदी वाक्य में इसका नियमित विधान नहीं होता है। यह मुख्य रूप से संख्यावाचक शब्द एक,दो इत्यादि निश्चयवाचक या संबंधसूचक सर्वनाम यह, वह, मेरा,तेरा आदि शब्दों का प्रयोग निर्धारक के रुप में होता है।
2.     पूर्व विशेषण –
यह एक ऐसा विशेषण होता है जो संज्ञा से पूर्व आने के कारण इसे पूर्व विशेषण कहा जाता है। यह विशेषण सात प्रकार के होते हैं जो हिंदी वाक्यों में प्राय प्रयोग किए जाते हैं। (1) गुणवाचक – सुंदर, कठिन(2) कृन्दत – फटा हुआ, बहता हुआ, वाला जैसे हरा वाला, बगल वाला आदि (3) सार्वनामिक – कोई, कौन आदि (4) संख्यावाचक – यह विशेषक समय मिलने का, आने की सूचना का , (5)सामान्य अधिकरण सूचक(कलासंकायाध्यक्ष), (6)आदरसूचक(श्री), (7)संज्ञाविशेषक (महिला अध्यापिका)। हिंदी में एक से अधिक विशेषकों का प्रयोग भी होता है। एकाधिक विशेषक होने पर सामान्यत: उन का क्रम निम्न प्रकार रहता है – को विशेषक सार्वनामिक+ संज्ञावाचक+ संख्यावाचक+ संज्ञा विशेषक आदि का प्रयोग क्रमबंध रूप से हिंदी वाक्यों में प्रयोग किया जाता है।
3.     शीर्ष -  
संज्ञा पदवर्ग का तीसरा घटक शीर्ष होता है। इसका प्रयोग हिंदी वाक्यों में मुख्य संज्ञा को शीर्ष स्थान दिलाना होता है।
4.     पश्च विशेषक -  
संज्ञा पदवर्ग में पश्च विशेषक का प्रयोग केवल पूर्ण विशेषण उपवाक्य में होता है। हिंदी में कभी-कभी मुहावरेदार वाक्यों में पश्च विशेषण की सत्ता देखने को मिलती है। जैसे- वाह! चाट क्या मसालेदार थी। उन्होंने साड़ी अच्छी पसंद की आदि।
हिंदी संज्ञा क्रिया के साथ कर्ता एवं कर्म के संबंधों के साथ भी जुड़ी रहती हैं जैसे लड़का पढ़ेगा( संज्ञाबद्ध) लड़का पुस्तक पढ़ेगा( कर्मबद्ध) है। ध्यान रहे कि संज्ञा लिंग वचन की अनवित्ति प्रदर्शित करती है।जैसे लड़का पढ़ता है, लड़की पढ़ती है, लड़के पढ़ते हैं, लड़कियाँ पढ़ती हैं आदि वाक्यों में संज्ञा द्वारा लिंग, वचन, कारक की अभिव्यक्ति दिखाई पड़ती है। इस प्रकार संज्ञा पदबंध हिंदी वाक्य का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक है।

हिंदी क्रिया पदबंध- :
 हिंदी क्रिया पदबंध मुख्य क्रिया और सहायक क्रिया के योग से निर्मित होता है। मुख्य क्रिया के तीन भेद किए जा सकते हैं- धातु, मिश्र, संयुक्त क्रियाएँ। धातु को सरल और सामासिक दो भागों में बाँटा जा सकता है। सरल को एकल नाम भी दिया जा सकता है क्योंकि इसमें धातु के अकर्मक और प्रेरणार्थक सभी रूप आते हैं। जैसे- कट, काट, कटवा अंग्रेजी में Cut और Sleep क्रियाएँ है, किन्तु इनके प्रेरणार्थक और सकर्मक रूप धातु के भीतर परिवर्तन द्वारा नहीं बनते हैं। कई क्रियाएँ तो अंग्रेजी में बिना रूप परिवर्तन के अकर्मक और सकर्मक दोनों में प्रयुक्त होती हैं जैसे हिंदी उबलना और उबालना दोनों के लिए अंग्रेजी में Boil शब्द ही मिलता है। सामासिक धातु यह दो धातुओं से मिलकर बनता है।चल-फिर ,उठ-बैठ,खाना-पीना,इत्यादि ये दोनों धातुएँ अर्थ की दृष्टि से या तो एक दूसरे से जुड़े होते हैं। या कभी-कभी,एक ही अर्थ क्षेत्र की होती हैं ।इस में दोनों धातुओं का अर्थ किसी न किसी रुप में बना रहता है । इस प्रकार की धातुओं के लिए अंग्रेजी में समतुल्य नही मिलते। ‘he is not able’ मिश्र क्रिया-  मिश्र क्रियाएँ संज्ञा या विशेषण  के बाद कर या हो शब्दों के योग से बनती हैं, याद करना ,सिद्धकर आदि । यहां कर और हो क्रिया बनाने का काम करते हैं। अंग्रेजी में इनका काम en या ize प्रत्यय द्वारा किया जाता है जैसे brighten,dramatize,Nationalize आदि।
संयुक्त क्रियाएँ :
    ये क्रियाएँ दो क्रियाओं के योग से बनती हैं, इसमें पहली क्रिया धातु के रूप में और दूसरी क्रिया काल पक्ष के रूप में प्रत्यय के जुड़ने से बनती हैं। जैसे राम ने रोटी फेंक दी, लड़कियाँ रो पड़ीं. यहाँ पर ‘फेंक’ और ‘रो’ अपने मूल घातु में दूसरी क्रिया रूप दी और पड़ी में व्याकरणिक विशेषताओं के साथ जुड़ी हुई हैं।  हिंदी की संयुक्त क्रिया अपने में एक विशिष्ट रूप है जो अंग्रेजी में नहीं मिलता. इसका कारण यह है कि इसकी प्रथम क्रिया कोश का वहन करती है। अत: इसे कोशिय क्रिया भी कहते हैं। दूसरी क्रिया स्वतंत्र अर्थ को अभिव्यक्त न करके पहली क्रिया द्वारा व्यक्त अर्थ को सीमित या रंजित करती हैं। इसलिए इसे रंजक क्रिया भी कहते हैं। हिंदी में संयुक्त क्रियाओं की संख्या सीमित है जो वास्तविक प्रयोग की दृष्टि से मुख्यत: आठ रंजक क्रियाओं के योग से बनती हैं। जैसे – आना, जाना, लेना, देना, पढ़ना, करना इत्यादि. अंग्रेजी में इन क्रियाओं के समतुल्य प्राय: नहीं मिलते हैं और इनकी अभिव्यक्ति के लिए Preposition या adverbal क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है. इसी कारण से उन क्रिया रूपों में रंजकता आ जाती है।
प्रकार की दृष्टि से हिंदी की क्रियाओं को छह प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है:-   
1-     योजक क्रियाएँ- हिंदी में यह क्रिया और इसके रूप योजक क्रिया कहलाते हैं। योजक क्रिया कर्ता को पूरक से जोड़ती है, हिंदी में संज्ञा विशेषण और क्रिया विशेषण पूरक के रूप में मिलते हैं। जैसे- मोहन इंजीनियर है, वह मोटा है, सतीश घर में है आदि।
2-     कर्ता + को क्रियाएँ- जो क्रियाएँ वाक्य में कर्ता + को की आकांक्षा करती है उन्हें इस वर्ग में रखते हैं। इन्हें को क्रिया भी कहते हैं। जैसे- राम को पढ़ना अच्छा लगता है, माता जी को बुखार है, मेरे मित्र को मकान चाहिए आदि।
3-     अकर्मक क्रियाएँ- कुछ क्रियाएँ वाक्य में कर्म की आकांक्षा नहीं करती हैं, वे अपने अर्थ पूर्ती के लिए स्थान, संशय या रीतिवाची सहअवयवों की आकांक्षा करती हैं। जैसे- बच्चा रो रहा है।(अकर्मक) वह कमली नगर में रहतता है।(स्थानवाची) यह मशीन अच्छा सिलती है।(रीतिवाची) आदि ।
4-     सकर्मक क्रियाएँ- यह क्रियाएँ कर्म की आकांक्षा करती हैं। सभी स्थानवाची क्रियाएँ इसी वर्ग में आती हैं। जैसे- राम सेब खाता है। रत्ना खाना पकाती है, इत्यादि।
5-     द्विकर्मक क्रियाएँ- इन्हें सहपात्रिय भी कहते हैं, ये क्रियाएँ दो कर्मों की आकांक्षा करती हैं। मैंने उसे पैसे दिए, राजीव ने पिता जी को किताब दी, आदि।
6-     कर्मपूरक- इस वर्ग में वे क्रियाएँ आती हैं जिनमें  पूरक के रूप में कर्म कार्य करता है। जैसे- हमने राहुल गाँधी को नेता चुना, माता जी ने भिखारी को भीख दी, आदि।
अंग्रेजी क्रिया पदबंध-
क्रिया वाक्य का केन्द्रीय घटक  होता है जिस पर अन्य घटक निर्भर करते हैं । अन्य घटकों की संख्या कर्म पूरक ‘ कि ’  उपवाक्य ( That ) आदि सभी क्रिया पर निर्भर करते हैं । इन आकांक्षाओं के आधार पर क्रिया के तीन वर्ग किये जा सकते हैं :
अकर्मक (Intransitive) ,
सकर्मक (Transitive)  
द्विकर्मक  (Ditransitive)
बच्ची रो रही है। Girl is weeping. (अकर्मक)
रमा सब्जी काट रही है । Rama is chopping vegetables. (सकर्मक)
मैंने राम को सौ रुपए दिए । I gave hundred rupees to Rama. (द्विकर्मक)
      स्पष्ट है की क्रिया में सभी बीज तत्व मौजूद होते हैं  जिससे यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किस क्रिया से कौन वाक्य बनाया जा सकता है । दो भिन्न भाषाओं के क्रिया सांचो के बीच अर्थ साम्यहोते हुए भी बहिर स्थलीय प्रतिरूपक और संरचना के स्तर पर भिन्नता मिलती है जो अनुवादक के लिए समस्या उत्पन्न करती है ।
       वाक्य में क्रिया का व्यवहरित रूप क्रिया पदबन्ध कहलाता है ,सामान्यता मुख्यक्रिया और सहायक क्रिया के योग से क्रिया पदबन्ध बनता है – वह जारहा है खेला, देखा, कूदा इत्यादि । मुख्यक्रिया शब्द के अर्थ का बोध कराती है इसके द्वारा उस अर्थ का ज्ञान होता है जो कोश में प्राप्त होता है । सहायक क्रिया से कार्य व्यापार के वचनपक्ष   वृत्तिवाच्य  काल इत्यादि की जानकारी होती है । सहायक क्रिया इन सभी बिन्दुओं से संबंधित व्याकरणिक  सूचना देती है ,  अत: कह सकते हैं कि सहायक क्रिया व्याकरणिक अर्थ का वहन करती है । अंग्रेजी क्रिया पदबन्ध मुख्य सहायक दो घटकों से   मिलकर बनता है comes  में  come मुख्य क्रिया  और s सहायक क्रिया है has come में  has सहायक क्रिया और  come मुख्य क्रिया है,Jumped में मुख्य क्रिया jump और ed इसी तरह is going में is और ing सहायक क्रिया एंव go मुख्य क्रिया के रूप में प्रयुक्त हईं है। अंग्रेजी क्रिया पदबंध को निम्न आरेख द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :




            English verb phrase
 
       Main Verb                                                 Auxiliary Verb
Transitive        Non-Transitive           Tense     Models      Aspect      Voice
  
Non-Transitive         Ditransitive       Complex Transitive                                Linking Verb (Copula)
(eat, drink)               (Gave)                     (took, broke)     (slap,cry,sit)                           (is,am,are,was,were)


अग्रेंजी क्रियापदबन्ध का रूपात्मक वर्गीकरण :
Verb क्रिया):  
     वह शब्द होता है जिसका paste tense रूप बन सके verb कहलाता है। जैसे: ask, play, can, wake इत्यादि। हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी की क्रियाएं अधिक प्रभावी होती हैं, कारण वे एक साथ कई भूमिका निभाने में सक्षम होती हैं। प्रयोग की दृष्टि से अंग्रेजी क्रियाओं के निम्नलिखित रूप हैं :
एकल क्रियाएं (single  verbs) –
     अंग्रेजी में   go, take , marry आदि क्रियाएं इस वर्ग में  आती है इनमें से कुछ मूल रूप से क्रियाएं होती हैं जबकि कुछ संज्ञा या विशेषण दे रूप परिवर्तन हुए बिना प्रयोग होता है जैसे –hoist
The hoist was not present in the party.
Can you hoist the show?
Father was going to office.
He fathered three children.
Auxiliary verb-
       जो  verbवाक्य के principal verb में मिलकर  tense, mood, voiceबनाने में सहायक होता है, उसे auxiliary verb (सहायक क्रिया) कहते हैं। She was writing. Where have you put it? ये हैं  Auxiliary verbs- be, is, am, are, was, were, has, have, had, do, does, did, shall, should, will, would, may, might, can, could, must, need, ought, dare, used to .
Base Infinitive:
     जब Infinitiveका प्रयोग बिना  to का किया जाता है तब उसे  bare infinitive कहते हैं। जैसे  :  Let me go. इस वाक्य में  Go bare infinitive है।
Bare Form:
 Verb के simplest form को base form कहते हैं। जैसे:  go, run, play, and remember इत्यादि।
Conditional Verb Form:  
(i) Verbका वह रूप जो would तथा should के साथ प्रयोग किया जाता है वह conditional verb form कहलाता है। जैसे:  I would run. She should dance. I should write.
(ii) जिस clause या sentence में if लगा हुआ हो और conditional verb form भी हो वह conditional clause या sentence कहलाता है। ऐसे वाक्य if के अलावा कुछ दूसरे शब्दों से भी शुरू हो सकते हैं। जैसे If you try, you will understand. I should be surprise if she knew. What would you have done if the bus had been late?
Copula or Linking Verb:
मुख्यत :  verb to be (am, is, are, was,were,,being, been) को  copula या linking verb कहा जाता है जिसका प्रयोग केवल  subject को उसके  complement से जोड़ने के लिए किया जाता है। Become, seen, appear, taste, grow आदि भी  copula/linking verb कहलाते हैं। जैसे  :  My friend is in Lucknow. The night grew cold. He became a teacher. The cow ran dry.
Defective Verb:
 ऐसा- verb (can,must, ought इत्यादि) जिसके सभी रूप यानी infinitive, participle या past tense नहीं होते जैसा एक सामान्य verb का होता है, defective verb कहलाता है। जैसे : can का infinitive रूप या participle रूप नहीं होता; must तथा  ought का  infinitive, participle या past tense रूप नहीं होता। जितने भी modal auxiliary verbs हैं वे सब defective verbs हैं।
Do or Emphatic Form:
Verb के do form में verb do (do,does,did) के साथ principal verb का infinitive form रहता है। Do form को अकसर emphatic form भी कहा जाता है; क्योंकि वाक्य को emphatic बनाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। किंतु Modern English में do form का प्रयोग अकसर question पूछने या वाक्य negative को बनाने के लिए किया जाता है। जैसे : I do like her. He does talk a lot. It doesn’t matter. Do you feel like talking?  I do go shopping every day.
Dynamic Verb:
ऐसे  verbs जिनसे किसी कार्य के होने  (action) की अभिव्यक्ति हो, अवस्था (state) की नहीं  dynamic verbs कहलाते हैं। ऐसे verbsका प्रयोग प्राय :  progressive tenses में होता है। Dynamic verbs express actions, not states; they can usually used in progressive tenses. जैसे :  fly, plan,shout इत्यादि।   
Finite Verb:  
जो verb अपने subject द्वारा अनुशासित होता है और जिसका रूप number, tense, mood, voice के कारण बदलता है, उसे finite verb कहते हैं। A finite verb form is one that can be used with a subject to make a verb tense. जैसे : breaks, broke, is sensing,has been इत्यादि।
Gerund:
Verb का -ing form जिसका प्रयोग noun की तरह वाक्य के subject के रूप में या preposition के बाद होता है, gerund कहलाता है। जैसे:  Smoking is dangerous. You cannot get there by walking.
Infinite Verb:
Verb के मूल रूप base form को infinite कहते हैं; इसमें verb के पहले साधारणत: to लगा होता है। Infinite का प्रयोग किसी दूसरे verb के बाद, किसी adjective या noun के बाद या वाक्य के subject या object के रूप में किया जाता है। जैसे: They want to go home. It is easy to sing. I have a plan to start a business. To err is human, to forgive divine. Please try to remember.
-ing Form:  
Verb का वह रूप जिसके अंत में –ing लगा रहता है –ing form कहलाता है, ऐसे verb form का प्रयोग विशेषत: noun या progressive के रूप में होता है। जैसे:  finding, keeping, running, firing, searching etc.
Intrnsitive Verb:
वह verb जिसके बाद कोई object नहीं आ सकता हो तथा जिसका प्रयोग passive voice में नहीं होता हो  intransitive verb कहलाता है।  An intransitive is one that cannot have an object or be used in the passive. जैसे  : The baby Sleeps. Dogs bark at night. They were talking.
Irregular Verb: 
(Not following the normal rules) Irregular verb के past tense अथवा/या past participleरूप के अंत में –ed नहीं होता। An irregular verb has a past tense and/or past participle that does not end in –ed, जैसे:  swim-swam-swum, fall-fell-fallen etc.
Lexical Verb:  
वह verb जो  auxiliary verb नहीं होता lexical verb कहलाता है।  A verb that is not an auxiliary verb is called a lexical verb. जैसे  : look, overtake, disturbहैं, किंतु  will या can lexical verb नहीं हैं।
Main Verb:
वह  verb जो किसी वाक्य के main clause के आधार के रूप में प्रयुक्त होता है,  main verb कहलाता है।   The verb which is used as the basis for the main clause in a sentence is called the main verb. जैसे  :  Running into the room,she started to cry. इस वाक्य में started main verb है।
Modal Auxiliary Verb:
Can,could,may,might,must, will, shall, would, should, ought और  need को modal auxiliary verbs कहते हैं। Dare, used to तथा  had better को भी कभी-कभी  modal auxiliary verb माना जाता है।  An auxiliary verb used to add to the principal verb such an idea as necessity, obligation, permission, possibility etc. Is called a modal auxiliary verb. It has no third person singularin –s and no participle form, and it is used with the simple infinitive form of the principal verb: can do, could do, must be.
Non-Finite Verb:
जो Verb किसी subject पर tense formation के लिए आश्रित नहीं होता उसे non-finite verb कहते हैं।  A verb from that cannot be used with a subject to make a tense is called a non-finite verb. जैसे : to break, breaking, broken, being broken आदि।
Participle Verb:
Verb का वह रूप जिसके अंत में -ing/-ed/-d/-t/-n लगा हो तथा जो modifier का कार्य करता हो, participle कहलाता है। जैसे:  He jumped into a running car. A burnt child dreads the fire. The setting sun cast a deepening Shadow.
Passive Verb:
Verb के जिस रूप से object की प्रधानता व्यक्त हो उसे passive verb form कहते हैं।  Passive verb form की बनावट  be + past participle होता है। Is broken, was told, will be helped- passive verb form हैं। किंतु breaks, told, will help- active verb forms हैं।
       They send Moti to prison for a year.  – Active
        Moti was sent to prison for a year.    - Passive
Phrasal verbs:  
Verb के मूल रूप तथा adverb particle से बने verb कोphrasal verb कहते हैं। The Phrasal verb is a verb that is made up of two parts: a ‘base’ verb followed by an adverb particle. जैसे:  take in, fill up, run over   ये क्रियाएं दो या अधिक रूप  से मिलकर बनती हैं जैसे – makeup,set setout , takeoff ,switchon  अर्थ की दृष्टि से phrasal भी दो प्रकार के होते है : simple phrasal and idiomatic phrasal जिन पदबन्धीय वर्ग क्रियाओं में preposition  या adverb  बाद मे जुडता है  और अर्थ में परिवर्तन या विस्तृतीकरण कर देता है उन्हे इस वर्ग में रखा जाता है जैसे : runaway,throwaway,falldown  आदि ध्यान रहे इसमें क्रिया का मूल रूप सुरक्षित रहता है परवर्ती तत्व preposition या  adverb उस अर्थ को बढा या घटा देता है । Idiomatic phrasal verb क्रिया शब्द के मूल अर्थ से भिन्न अर्थ् व्यक्त करती है : जैसे give up , made up , give in , brought out.
Prepositional Verb:
वह  verb जिसमें दो भाग हों- एक ‘base’ verb + एक preposition, prepositional verb कहलाता है। A verb that has two parts : a ‘base’ verb and a prepotion is called a prepositional verb. जैसे : care for, insist on, fight with, move about आदि।
Principal Verb:
Verb phrase का वह भाग जिससे मुख्य अर्थ व्यक्त होता है principal verb कहलाता है । Auxiliary verb तो केवल principal verb के अर्थ को modify करता है। Verb phrase में principal verb का रूप past या present participle या infinitive होता है। जैसे: They are coming late. He does talk, a little too much. You should have seen her face. We were given the medal. She has been crying.
Regular Verb:
वह Verb जिसके अंत में d, t या  ed जोड़कर past tense बनाया जाता है, regular verb कहलाता है। जैसे : walk/walked, please/pleased, work/ worked.

Stative Verb:
वह verb जिससे अवस्था (states) का बोध हो, actions का नहीं और जिसका प्रयोग प्राय: progressive tenses में नहीं होता है, ststive verb कहलाता है। A stative verb is one that is not normally used in progressive tenses. Most stative verbs refer to states, not to actions or events. जैसे : know, remember, contain आदि।
Strong Verb:
वह Verb जो अपने अंतर्गत vowel के परिवर्तन से ही अपना past tense या past participle रूप बना सके strong verb कहलाता है। जैसे : drive-drove-driven, sing-sang-sung, eat-ate-eaten, fall-fell-fallen etc.
Transitive Verb:
वह  verb जिसके बाद कोई object लग सके, transitive verb कहलाता है।  A transitive verb is one that can have an object. जैसे : eat (a meal); drive (a car); give (a present); sing (a song). यहाँ  eat, drive, give, sing transitive verbs हैं।
Verb Phrase:
वह verb जिसके कई भाग (several parts) होते हैं, verb phrase कहलाता है। जैसे : would have been forgotten  .
weak verb:
जिस verb का past tense तथा past participle d,t या ed जोड़ने से बनता है, weak verb उसको कहते हैं। ( सीमित अर्थ में weak verb को regular verb कह सकते हैं )। जैसे : walk-walked, hurry-hurried, teach-taught, sell-sold, send-sent .





Functional classification of the Eng. verb
                    Main Verb
 


Transitive                                                               Non-Transitive
 


Transitive      Ditransitive                Complex            Verb with object verb
SOV                              SVOO                                                      SVOC                                           SVOV
(I love her)               (I gave her a car)                  (We elected him president)    (He advoice me to go)

      
                            intransite                         Linking verb
                               Sv                               Svc
                    (She smiles)                        (She is a teacher)









                 Auxiliary Verb
 




Tense                     Modelity                    Aspect Perfective              Aspect Progressive                   Voice Passive                                                                                                                                          
                           (will,can,must,may,etc.)          (has,have)                     (hp+ing)                                (IIIrd form)                                                                                                                                      
 



Present                              Past
(She loves)                       (She loved)

अंग्रेजी क्रियाओं में मुख्यत: सहायक क्रिया मुख्य क्रिया से पहले प्रयुक्त होती है। अंग्रेजी की कुछ सहायक क्रियाएँ मुख्य क्रिया के रूप में परिवर्तन की माँग करती हैं। जैसे- Has killed यहाँ ed का अतिरिक्त प्रयोग हुआ है। साथ-साथ वर्तमान एवं भूतकाल का परिचय देने वाली सहायक क्रियाओं का भी प्रयोग होता है। मुख्य क्रिया के साथ अंग्रोजी में ज्यादा से ज्यादा तीन सहायक क्रियाएं लगाई जा सकती हैं।
He cooks his food himself.    (NO Auxiliary Verb)
He is cooking his food himself.  (One Auxiliary Verb)
He has been cooking his food himself. (Two Auxiliary Verb)
He might have been cooked by him.   (Three Auxiliary Verb)   


हिंदी – अंग्रेजी क्रियाओं में व्येतिरेक-
1-     हिंदी में प्रयुक्त है और होता है दोनों के लिए अंग्रेजी में का प्रयोग होता है। जैसे पहाड़ी लोग मेहनती होते हैं। The people in hill are hard working.  सीता अध्यापक है। Sita is a teacher.
2-     हिंदी की तुलना में अंग्रेजी की योजक क्रियाओं में भेदकता अधिक है। हिंदी की लग क्रिया के लिए अंग्रेजी में भिन्न-भिन्न रूपों का प्रयोग मिलता है – seem, appear, look, feel, smell, sound, test आदि ।
As: The water’s test is sweety. The music sound is melodious. The flower smell sweet. The question feels hard.The child seems healthy.
इसी प्रकार हिंदी क्रिया हो जाना के अंग्रेजी के सुक्ष्म विकल्प के एकाधिक विकल्प मिलते हैं। जैसे तुम्हारे बाल सफेद हो गये। Your hair turned grey. वह बूढ़ी हो गयी। She is grown old. वह बीमार हो गई। She is fell ill.
3-     अंग्रेजी की एक सहायक क्रिया के लिए हिंदी में एक से अधिक विकल्प मिलते हैं। यह भी संभव है कि कहीं-कहीं अंग्रेजी सहायक क्रिया के लिए हिंदी में केवल मुख्य क्रिया का प्रयोग किया जाए सहायक क्रिया की जरुरत न पड़े। जैसे : I can speek French. Can I open the door?
4-     अकर्मक क्रियाओं का विधेय विस्तार दोनों में भिन्न होता है। अंग्रेजी में विधेय के स्थान पर केवल एक शब्द वाली अकर्मक क्रियाओं के प्रयोग को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता। फलस्वरूप यदि संभव होता है तो विधेय में एक डैमी(Damy) कर्म का प्रयोग किया जाता है। जिससे अर्थ में तो कोई वृद्धि नहीं होती है लेकिन विधेय का विस्तार हो जाता है। निम्न उदाहरणों में ध्यान दें कि हिंदी में ऐसा विधान नहीं है। अत अनुवाद करते समय इसका ध्यान रखना चाहिए। जैसे- उसने थोड़ी देर आराम किया। He rested for a while. Or He took rest for some time. वह कम काम करता है। He does little work.
5-     दोनों भाषाओं की प्रेरणार्थक क्रियाओं में अंतर है। हिंदी में क्रिया के आन्तरिक रूप में परिवर्तन कर प्रेरणार्थक के दो रूप बनते हैं। जैसे सोना, सुलाना, सुलवाना, खाना, खिलाना, खिलवाना इनके अनुवाद के लिए अंग्रेजी में keep, have, get, make जैसे स्वतंत्र शब्दों का प्रयोग कर प्रेरणार्थक अर्थ को व्यक्त किया जाता है। उदाहरणार्थ उसने हमें तीन घंटे इंतजार करवाया। She kept us waiting for three hours. मैंने कमरे से कालीन हटवा दी। I have got corpet remove from the room.
6-     द्विकर्मक क्रियाओं के संबंध में अंग्रेजी में द्विकर्मक क्रियाओं के वाक्य वैकल्पिक रूप में मिलते हैं। एक प्रकार के वाक्यों में अप्रत्यक्ष कर्म (Indirect object) के बाद ‘to’ या ‘for’ का प्रयोग करते हैं। दूसरे प्रकार के वाक्य में कुछ नहीं लगता, लेकिन हिंदी के दोनों प्रकारों में को या के लिए लगता है। जैसे : I gave my book to Ram. मैंने अपनी पुस्तक राम को दी। I bought a sari for my mother. मैं अपनी माता जी के लिए साड़ी लाया।
7-     हिंदी में कुछ क्रियाएं कर्ता के बाद को की आकांक्षा करती हैं, इन्हें को क्रिया कहते हैं। जैसे- लड़के को खाना चाहिए। The boy wants food. इस प्रकार के वाक्य को को वाक्य कहते हैं। को की आकांक्षा कभी-कभी शारीरिक या मानसिक अवस्था को व्यक्त करने वाली संज्ञा के कारण भी होती है। जैसे- माता जी को भूख लगी है। Mother is hungry. ध्यान दें कि हिंदी की यह विशिष्ट रचनायें अंग्रेजी में अलग-अलग तरह से व्यक्त होती हैं। जैसे उसको बुखार है। She has fever.
8-     हिंदी में कर्ता के बाद से लगाकर प्राय: असमर्थता का बोध कराया जाता है। इस प्रकार के वाक्यों का प्रयोग नकारात्मक परिनेश में होता है। हिंदी में यह वाक्य कर्मवाच्य में मिलते हैं। जैसे- मुझसे और पढ़ा नहीं जाता। I cannot study any more. मुझमे दरवाजा नहीं खोला जाता। I am unable to open the door. Or I cannot open the door.
अंग्रेजी के इन वाक्यों को हिंदी में अनुदित करने पर एक विकल्प और मिलता है। जैसे- मैं और पढ़ नहीं सकता। मैं दरवाजा खोल नहीं सकता। इस तरह अंग्रेजी और हिंदी क्रियाओं में व्यतिरेक पाया जाता है।     
   




"आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीः कुछ सूत्रात्मक वाक्य"

" आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदीः कुछ सूत्रात्मक वाक्य " 1. आध्यात्मिक ऊँचाई तक समाज के बहुत थोड़े लोग ही पहुँच सकते हैं।...