Tuesday, 22 November 2016

अनुवाद कार्य में रूपरचना और वाक्यरचना का व्येतिरेकी विश्लेशण, अध्याय-3

( अध्याय – 3 )
रुपरचना में व्यतिरेकी विश्लेषण का महत्व
क - रूपरचनात्मक व्येतिरेक – रूप या पद दोनों समानार्थी हैं, वस्तुत मूल या प्रतिपादित शब्द धातुओं में व्याकरणिक प्रत्ययों के संयोग से अनेक शब्द बनाये जाते हैं। जो वाक्य में प्रयुक्त होने पर पद (रूप) कहलाते हैं। उच्चारण की दृष्टि से भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनी है तथा अर्थ की सार्थकता की दृष्टि से शब्द। यह सार्थक शब्द जब किसी वाक्य में प्रयुक्त होता है तो रूप बन जाता है। सार्थक ध्वनियों के समूह को रूप या पद कहते हैं। किसी भाषा के प्रयोग की सार्थकता उसके द्वारा अभिव्यक्त होने वाले भाव एवं विचारों की पूर्ण स्पष्टता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक वाक्य में प्रयोग किए गए पद या रूप सुव्यवस्थित हों, अर्थात संबंध तत्व और अर्थ तत्व में पूर्ण रूप से समानता हो। भाषाओं में रुप परिवर्तन संज्ञा, सर्ननाम, विशेषण तथा क्रिया पदों में लिंग, वचन, कारक, पुरुष, काल, अर्थ आदि के अनुसार होता है।
    प्रत्येक भाषा की संरचना दूसरी भाषा की संरचना से भिन्न होते हैं। भाषा संरचना को अध्ययन की सुविधा के लिए ध्वनि, व्याकरण एवं अर्थ इन तीन खंडों में विभक्त किया जाता है। व्याकरण को रूप रचना और शब्दों की संरचना इस दो वर्गों में विभाजित करते हैं। रूप रचना के अंतर्गत किसी व्याकरण के रूप अर्थात शब्दों का अध्ययन किया जाता है। शब्द के स्वरूप, प्रकार, नवीन शब्दों की रचना प्रक्रिया मूल शब्दों की रचना प्रक्रिया मूल शब्द में जुड़ने वाले प्रत्यय, सामासिक शब्द आदि का वर्णन रूप रचना का अंग है। ध्यान दें कि प्रत्येक भाषा इन रूप रचनात्मक लक्षणों में भिन्न-भिन्न होती हैं। रूप रचनात्मक व्यतिरेक के अंतर्गत मुख्यत: तीन बिंदुओं पर विश्लेषण किया जाता है। तात्पर्य यह है कि किंही दो भाषाओं के रूपरचना के बीच स्थूल रूप से तीन प्रकार के व्यतिरेक देखने को मिलते हैं।
1.    शब्द निर्माण प्रक्रिया की जटिलता- विश्व की सभी भाषाएं योगात्मक और आयोगात्मक दो वर्गों में बाँटी जाती हैं। जहाँ आयोगात्मक भाषा अपनी सत्ता में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं करती और जिसमें प्रत्येक विशिष्ट व्याकरणिक और अर्थगत भाव की अभिव्यक्ति नवीन शब्दों से होती है, वहाँ आयोगात्मक भाषाएं मूल धातुओं से नवीन रूपों की रचना करतें हैं। उच्च विभक्ति प्रधान भाषाएं जैसे – संस्कृत, ग्रीक, लैटिन आदि भाषाएं आयोगात्मक परिवार की भाषाएं ज्ञात होती हैं। चीनी, लाडू आदि में अनुवाद करने पर प्रयुक्त शब्दों की संख्या में वृद्धि अवश्य होती है। क्योंकि जहाँ संस्कृत और ग्रीक में क्रिया शब्द कारक, काल, पक्ष, वचन, वृत्ति, पुरुष आदि का ज्ञान कराते हैं, वहीं चीनी और लाडू जैसी आयोगात्मक भाषाएं इन सब की अभिव्यक्ति अलग-अलग शब्दों से करती है। यह आवश्यक है कि शब्दों में वृद्धि तो होती है पर साथ ही साथ संख्या के शब्दों में भी वृद्धि अवश्य होती है। फिर भी सूचना वही रहती है, यथा दूसरी तरफ यदि अनुवादक स्किमो या इलीकानों भाषा की क्रिया को ग्रीक में अनुवाद करे तो वह देखता है कि इन भाषाओं की क्रियाएं संस्कृत और ग्रीक की क्रियाओं से कहीं अधिक भाषाई भाव व्यक्त करती हैं। इस स्थिति में अनुवादक को क्रिया के अलवा अन्य शब्दों का सहारा लेना पड़ता है।
रूप रचना के अंतर्गत रूप या शब्द और वस्तु या पदार्थ इन दोनों के     अतिरिक्त भाव की स्थापना की कल्पना भी रूप या पद में की गई है। जो      वस्तु और शब्द की मध्यवर्ती होती है,शब्द का अर्थ भाव पर आधारित होता है। रूप, शब्द और वस्तु इन तीनों घटकों को कई नामों से अभिहित किया जाता है, जिनमें कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं –:
आग्डेन और रिचर्डस ने बड़ी कुशलता के साथ अर्थीय त्रिकोण (semiotic tringle) के द्वारा इसका निरूपण किया है। अर्थ विज्ञान के क्षेत्र में इस त्रिकोण ने बड़ी प्रसिद्धि और स्वीकृति प्राप्त कर चुका है।
                   भाव, आख्येय, वाच्य

   शब्द, रूप, संकेतक                     पदार्थ, वस्तु, संकेतित



उपर्युक्त त्रिकोण से एक बात स्पष्ट है कि किसी भी पद के कुछ अभिलक्षण होते हैं र कुछ विशेषताएं होती हैं जिसमें से कुछ तो अन्य पदों में भी पाई जाती हैं और कुछ उसकी अपनी होती हैं जो मात्र उसमें ही पाई जाती हैं। अन्य पदों या रूपों में पाई जानेवाली विशेषताओं के आधार पर उनको कोटि (वर्ग) में रखा जाता है।
2-     पदवर्ग संबंधी व्यतिरेक- बहु भाषी राष्ट्र या विश्व में व्यवहरित विविध भाषाओं के पदवर्ग या शब्दवर्ग में में भिन्नता मिलती है। वहीं कुछ भाषाओं में पाँच या आठ वर्ग भी देखे जाते हैं। पदवर्गों के बीच मात्र संख्या ही नहीं अपितु पदवर्ग द्वारा व्यक्त अर्थ में भी परिवर्तन मिलता है। जैसे – अंग्रेजी के क्रिया विशेषण quickly, slowly, recently इन शब्दों को यदि डिंका (Dinka) भाषा में अनुदित किया जाय तो वहाँ ये सहायक क्रियाओं द्वारा अनुदित होंगे। किन्तु ध्यान रहे कि यह विशेषता सभी अंग्रेजी विशेषणों के साथ लागू नहीं होती। इसी प्रकार कभी-कभी दो भाषाओं में समान पदवर्ग मिलने पर भी पदवर्ग के कार्य में अंतर दिखाई पड़ता है। क्योंकि ध्यान रहे कि प्रत्येक भाषा के शब्द जहाँ एक तरफ कुछ व्याकरणिक अर्थ को व्यक्त करते हैं तो दूसरी विशिष्ट अर्थ भी व्यक्त करते हैं । अत: कई बार ऐसा होता है कि स्टैपीन (Stapean) भाषा का शब्द जिस अर्थ या नियम की अभिव्यक्ति करता है, लक्ष्य भाषा का शब्द उन सभी पर खरा न उतर सके । जैसे :
He was cycling.  वह साइकिल चला रहा था।
He was playing with pipe. वह बांसुरी बजा रहा था।
3-      व्याकरणिक कोटियों के आधार पर व्यतिरेक – प्रत्येक भाषा के शब्द या पंक्ति भाषा के लिंग, वचन, कारक, काल, पुरुष आदि की अभिव्यक्ति करते करते हैं। जैसे कुछ भाषाओं में वाच्य के दो वर्ग मिलते हैं, वहीं कई भाषाओं में वाच्य कर्म कार्य नहीं करता है। जैसे Passive voice के सभी वाक्यों का कृत वाच्य बनाते समय वाच्य में परिवर्तन करना पड़ता है। इसी प्रकार अल्गोइक्यून (Algoiquine) भाषा में लिंग द्वारा वस्तु या व्यक्ति की आकृति का ज्ञान होता है। साथ ही साथ प्राप्त भाषा में कोटियों का प्रयोग भी भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता है, अर्थात हो सकता है कि दो भाषाओं में समान कोटियाँ प्राप्त हों किंतु आवश्यक नहीं है कि दोंनो का प्रयोग परास/समान हो। जैसे हिंदी में हम का प्रयोग एकवचन एवं बहुवचन दोंनो के लिए होता है। इसी प्रकार अंग्रेजी में who और which दो सर्वनाम मिलते हैं,who का प्रयोग He और She के लिए तथा which का प्रयोग It के लिए होता है, और कुछ स्थानों पर दोंनो का प्रयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति में अनुवादक को सार्थकता से काम लेना पड़ता है। इसके अतिरिक्त व्याकरणिक कोटि का चयन किस पदवर्ग से हुआ है में भी भेद देखने को मिलता है । अर्थात किसी भाषा के कौन-कौन से पदवर्ग (संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया आदि) किस-किस व्याकरणिक कोटि (लिंग, वचन, कारक, पुरूष, काल आदि) का चयन करते हैं। इस संबंध में भाषाओं में भिन्नता मिलती है। जैसे हिंदी और अंग्रेजी के लिंग चयन की बात करें तो हिंदी में संज्ञा, क्रिया, विशेषण (कतिपय विशेषण) लिंग का चयन करते हैं। जैसे –
मेरी पीली साड़ी धुली है। शीला की लाल फ्राक जली है आदि। वहीं अंग्रेजी में लिंग का चयन सिर्फ संज्ञा या सर्वनाम के द्वारा किया जाता है। जैसे- He goes to school. She goes to school. They go to school etc.
अत: कह सकते हैं कि हिंदी अंग्रेजी के मध्य रूप रचना के स्तर पर व्यतिरेक पाया जाता है।
निष्कर्ष  
इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण का अनुवाद में उपयोग किया जाता है और व्यतिरेकी विश्लेषण से जो निष्पतियाँ प्राप्त होती हैं, उससे अनुवाद प्रकिया में लाभ उठाया जाता है। व्यतिरेकी विश्लेषण में अनुवाद का उपयोग उस सीमा तक होता है जहाँ वह दोंनो भाषाओं की सामग्री प्रस्तुत करता है। चूँकि अनुवाद की प्रक्रिया भाषा अधिगम की प्रक्रिया से जुड़ी हुई है, इसलिए इसे बोधन तथा संप्रेषण की प्रक्रिया भी मान लिया गया है। इससे भाषा शिक्षण की सामग्री के निर्माण में व्यतिरेकी विश्लेषण से सहायता मिलती है। व्यतिरेकी विश्लेषण अनुवाद की उपयोगिता के बारे में सैद्धांतिक आधार प्रस्तुत करता है। किर्कवुड (1966) ने अनुवाद को व्यतिरेकी विश्लेषण के लिए वाक्यपरक एवं अर्थपरक स्तर पर आधार का कार्य करने के संबंध में कहा है कि अनुवाद के माध्यम से व्यतिरेकी विश्लेषण- यहाँ अनुवाद अपने आप में साधन के रूप में है न कि साध्य के रूप में और वह भी अल्प किंतु गहन रूप में- अध्येता का ध्यान दो भाषाओं के वाक्यपरक और अर्थपरक भेदों तथा असमानताओं की ओर दिलाता है, इन भेदों तथा असमानताओं को पकड़ता है और कुछ सीमा तक उनका समाधान भी करता है।’’
अनुवाद व्यतिरेकी तकनीक के रूप में स्रोत भाषा और लक्ष्यभाषा के बीच व्याप्त असमानताओं के प्रति सजगता पैदा करता है। इससे समतुल्ता के संबंध को जानने के लिए स्रोत भाषा और उसके अनुदित पाठ का विश्लेषण करने की क्षमता पैदा करता है। वास्तव में स्रोत भाषा के निकटस्थ घटकों का पहले विश्लेषण होता है,उसके बाद क्रमवार अनुवाद प्रक्रिया प्रारम्भ होती है जिससे विभिन्न संरचनात्मक और असमानताओं की तुलना करने में सुविधा होती है। यह सही की व्यतिरेकी विश्लेषण का पहला प्रारूप भाषिक अर्थ पर बल देता है किंतु उसे अनुवाद का अंतिम उद्देश्य नहीं माना जाता।  आज व्यतिरेकी विश्लेषण दो भाषाओं की तुलना के साथ-साथ संप्रेषणपरक अर्थ को भी अपने अध्ययन-क्षेत्र में लेता है। इस विश्लेषणपरक अध्ययन के अंतर्गत अनुवाद का पहला कार्य संदेश का मंतव्य प्रस्तुत करना है जिसे न्यूमार्क (1981) ने संप्रेषणपरक अर्थ कहा था। इस प्रकार व्यतिरेकी विश्लेषण दो भाषाओं के मध्य प्राप्त व्यतिरेक को हल कर उसे अनुवाद और भाषा शिक्षण में लाभप्रद बनाना है।

 संदर्भ-ग्रंथ सूची

क्रम सं.
पुस्तक का नाम
लेखक
1
व्यतिरेकी भाषाविज्ञान       
डॉ. भोलानाथ तिवारी एवं किरण बाला
2
व्यतिरेकी भाषाविज्ञान
डॉ. विजय राघव रेड्डी
3
अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान        
डॉ. कविता रस्तोगी
4
समसामायिक भाषाविज्ञान
डॉ. कविता रस्तोगी
5
अनुवाद सिद्धांत एवं प्रयोग
जी.गोपीनाथन
6
अनुवाद अंक 100-101
डॉ. कृष्ण कुमार गोस्वामी
7
हिंदी व्याकरण
कामताप्रसाद गुरु
8
English Grammar & Composition
Wren & Martin
9
The Practical English Grammar
K.P.Thakur

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