Monday, 31 October 2016

कविता हिंदी का दर्द



सुबोध कुमार सिंह

( हिंदी का दर्द )
हिंदी तेरे दर्द की, किसे यहाँ परवाह ।
एक अंग्रेजी साल में एक हिंदी सप्ताह ।।
धड़कन में इंग्लैण्ड है, मुँह पर हिंदुस्तान ।
ऐसे में हो किस तरह हिंदी का उत्थान ।।
निज भाषा, राष्ट्र और संस्कृति से परहेज ।
गोरों से आगे हुए हम काले अंग्रेज ।।
स्वाभिमान को बेचकर जारी जिनके जश्न ।
है फिज़ूल उनके लिए निज भाषा का प्रश्न ।।
अंग्रेजी के मोह में खोई निज पहचान ।
घर के रहे न घाट के हम धोबी के स्वान ।।
दिल्ली तेरे न्याय पर कैसे हो विश्वास ।
अंग्रेजी को राज सुख, हिंदी को वनवास ।।
भाषा-संस्कृति से रहा, यदि यूँ ही विद्वेष ।
आने वाली पीढ़ियाँ ढूँढेगी इनके अवशेष ।।
हिंदी का खाकर गुने, जो अंग्रेजी गीत ।
हे प्रभु ! सौ दुश्मन मिले, मिले न ऐसा मीत ।।


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