Wednesday, 17 July 2019

“मैं किसान”


मैं किसान
मैं किसान इस जग का पेट भरता हूँ।
जाड़ा, बारिश, गर्मी की मार सहता हूँ।।
रूखी सूखी रोटी खाकर नित रोज।
चला खेत में हल मैं बोता हूँ बीज।।
परिश्रम से मैं कभी न पीछे हटता।
अपना काट पेट मैं दूजों का भरता।
मैं तो पर्यावरण सुरक्षित रखता।
जल को भी मैं संचित करता।।
पेंड़ों का भी मैं रोपण करता।
वनस्पति का रक्षक बनता।।
चाहे गर्मी की तेज धूप हो,
या बरसात का मौसम हो।
या दिन हो या फिर रात हो,
मौसम का चाहे जो हाल हो।।
कभी किसी से न ही होता हूँ बेहाल।
चलता रहता अपने जीवन की चाल।।
प्रकृति कभी तो है बनती वरदान।
कभी चूर कर देती स्वप्न महान।।
हँसते-हँसते मैं सब कुछ सहता।
खेत की खातिर खेद न करता।।
है मेरे जीवन का यह ताना बाना।
है प्यारा मुझे अन्न का दाना दाना।।
लहलहाती फसल देख मन उमंग से भर जाता।
खान पान सब जग का नित हमसे ही है आता।
मैं अपने गर्व पर न करता अभिमान।
मेरे लिए जहाँ में प्यारा है हर इंसान।।
खेत का कण-कण है अपनी जान।
जग में अपनी बस इतनी पहचान।।
मैं जगत का मेहनतकश हूँ किसान।
मैं जगत का मेहनतकश हूँ किसान।।

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