Wednesday, 23 November 2016

कविता अपनी भाषा

अपनी भाषा
अपने देश की भाषाएँ क्यूं इतनी लाचार ।
भारतवासी होकर हम क्यूं इतने बेकार ।।
देश की भाषाओं में है क्षमता अपरमपार ।
कर सकती हैं भाषा हर विषाद से उद्धार।।
फिर भी अपनी भाषा से काम में परहेज ।
अंग्रेजी के अंधेरे में बन बैठे हैं जो अंग्रेज ।।
गर छोड़ सके हम अंग्रेजी का अबभी मोह ।
नही रहेगा  देश में फिर भाषाई विद्रोह ।।
मेधावी बनकर हम करें अपना प्रसार ।
तभी विश्व में निखरे भारत का प्रभार ।।
अपनी संस्कृति ने दिया पूरे विश्व को ज्ञान ।
आज उसी को भूलकर हम सब बने अज्ञान ।।
भाषाई संघर्ष ने हम सब को बाँट दिया ।
समाज खुद एक बेजान मंच बन गया ।।

अनुरोध सुनो अब काम करो अपनी भाषा में।
संतप्त वतन पुष्पित कर रंग भरो चमन में।।

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